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शब्दार्थ :- कायव्वं करना, कस्स=किसको, व=अथवा, केण=किसे, वा=अथवा, क इ ओणयं-कितने अवनत, विप्पमुक्ळ रहित, (अ)-वि-भी, काहे कब करना, क इ-कितनी, खुत्तो-बार, कीस-किस लिए ?क्या कारण ?, कीरइ-कियाजाता है ___ गाथार्थ:- वंदनकर्म, चितिकर्म, कृतिकर्म, पूजाकर्म और विनयकर्म (ये पांच गुरुवंदन के नाम है) वह किसको करना ? किसे करना ? कब करना? कितनीबार करना ?तथा वंदन में अवनत (शिष्य के प्रणाम) कितने? शीर्षनमन कितने ? और ये गुरुवंदन कितने आवश्यकों द्वारा विशुद्ध किया जाता है? कितने दोषों से रहित किया जाता है ? तथा कृति कर्म (वंदनक) ( वांदणा) किसलिए किया जाता है? ये ९ व्दार इस वंदन विधि में कहे जायेंगे ||५॥६॥
भावार्थ :- गाथार्थ की तरह सुगम है, लेकिन इतना विशेष कि-इस भाष्य में जो बाते कही जायेगी, वो इन दारों के माध्यम से नहि अपितु
(भाष्य कर्ता द्वारा कथित २२ द्वार) आगे दूसरी तरह कहे जाने वाले २२ दारों के मुताबिक कही जायेगी। ये ९ ढार भी २२ दारों के ' अंतर्गत कह दिये जायेंगे। जिससे ये दो गाथाएँ तो आवश्यक सूत्रमें वर्णन किये गये तीसरे वंदन आवश्यक के (नियुक्ति में) प्रारंभ की मुख्य होने से, और इस प्रकरण के संबंधवाली होने से सिद्धांत की भक्ति निमित्त कही गयी है।
.: दारों का संबंध-२२ दारों में इस प्रकार है। प्रथम (१) ब्दार का समावेश ४ थे दार में ५, ६, ७ वें दार का समावेश १० वें दार में दूसरे (२) दार का समावेश ५-६-दार में ८ वें दार का समावेश १३ वे ढार में तीसरे (३) ब्दार का समावेश ७-८-दार में ९ वें दार का समावेश १४ वें दार में चोथे (४) दार का समावेश ९-द्वार में (इति:- आवश्यक नियुक्ति अनुसार)
अवतरण:- पूर्व की गाथाओं में जो (आवश्यक नियुक्ति में कहे गये) ९ व्दार कहे गये उन्ही ९ दारों का विशेष स्वरुप समजाने के लिए, दूसरे तरीके से २२दार ग्रंथकार (स्व रचित)३ गाथाओं द्वारा कह रहे है। वो इस प्रकार है ।
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