SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'जह दुओ रायाणं, नमिउं कज्जं निवेइउं पच्छा | विसज्जिओ वि वंदिय, गच्छइ एमेव इत्थं दुगं ॥२॥ = शब्दार्थ : जह = जैसे, दूओ = दूत ( राजसेवक ), रायाणं = राजा को, नमिउ : नमस्कार करके, कज्जं = कार्य, निवेइउ निवेदन करके, पच्छा = उसके बाद, विसज्जिओ = विसर्जन करने पर, (अ) वि= भी, वंदिय= नमस्कार करके, गच्छइ = जाता है, एमेव : इसी प्रकार, इत्थ = यहाँ (गुरू वंदन में), दुगं = दो बार वंदन होता है । गाथार्थ : जैसे दूत प्रथम राजा को नमस्कार करके कार्य का निवेदन करता है और उसके बाद राजा द्वारा विसर्जन करने पर भी (राजा द्वारा जाने की आज्ञा मिलने पर भी ) पुन: (दूसरी बार ) नमस्कार करके जाता है। इसी प्रकार गुरूवंदन में भी दो बार वंदना की जाती है (अर्थात् इसी कारण से गुरू को खमासमणे भी दो दिये जाते है और व्दादशावर्त्त वंदन भी दो बार किया जाता है |) ॥२॥ *** अवतरण: (पुनः प्रसंगवत्) वंदन का अर्थ और वह कैसे किया जाता है ? उक्त दोनों बात (तीसरे प्रकार के गुरुवंदन का जिक्र करना बाकी है, फिर भी उसके पहले) कही जा रही है । आयारस्स उ मूलं, विणओ सो गुणवओ य पडिवत्ती । साय विहि वंदणाओ, विही इमो बारसावते ॥३॥ (गुरुवंदन भाष्य ) शब्दार्थ :- आयारस्स = आचार का, धर्म का; उ = (तु) = तथा, मूलं = मूल, विणओ = विनय, सो= वह, गुणवओ गुणवंत की, पडिवत्ती प्रतिपत्ति, भक्ति, सा= वह (गुणवंत की भक्ति ). विहि = विधिपूर्वक, वंदणओ= वंदन करने से होती है ), विहि= (और वह) वंदनादि विधि, इमो = यह, आगे कहने में आयेगी वह (विधि), बारसावत्ते = व्दादशावर्त्त वंदन में है । (१) ये गाथा आवश्यक नियुक्ति की है । 82
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy