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________________ शब्दार्थ :- पाव - खवणत्थ = पापों का क्षय करने के लिए, इरियाइ =इरिया वहियाका, वंदन - वत्तियाइ - छ - निमित्ता = वंदण वत्तिया विगेरे छ निमित्तों का, पवयण - सुर सरणत्थं = प्रवचन सुर - शासन देवों के स्मरण के लिए, उस्सग्गो-कायोत्सर्ग करना, इय-इस तरह, निमित्त निमित्त, अहा = आठ गाथार्थ :-पापों का क्षय करने के लिए इरियावहिया प्रतिक्रमणका, वंदन - वत्तिया विगेर छ निमित्तों का, और शासन देव के स्मरणं के लिए काउस्सग्ग करना, इस प्रकार आठ निमित्त हैं। ____ विशेषार्थ:-चैत्यवंदना से पूर्व इरियावहिया प्रतिक्रमना होता है, तथा एक लोगस्स का कायोत्सर्ग किया जाता है। जिसका कारण चैत्यवंदना से पूर्व मन, वचन, काया की शुद्धि की जाती है। 'पावाणं कम्माणं निग्घायण-ट्ठाए' इससे पाप कर्मोके क्षयके लिए कायोत्सर्ग होता है, तथा वंदण बतिआए से निरुवसग्गवतिआए तक के छ निमित्तों से उसके बाद का कायोत्सर्ग होता है। याने कि द्रव्यपूजा से मिलने वाला फल कायोत्सर्ग आदि अभ्यंतर तपसे भी प्राप्त हो सकता है। उसी तरह कितनीक बार अभ्यंतर तपसे प्राप्त होने वाला फल बाह्य तपसे या द्रव्य चारित्र से भी प्राप्त हो सकता है । मात्र गौण मुख्य भाव कारण रुप होते हैं। द्रव्य भाव सहित आदरणीय है । और भाव द्रव्य सहित आदरणीय है। अध्यवसाय 3. मन वचन, कायाके योगकी विचित्र-विचित्र योजना तथा तीनरत्न की आराधना से संबंधित विविध योग प्रक्रियाओं के स्वरूप की जानकारी से ये विषय अति स्पष्ट हो सकता हैं। याने कि कायोत्सर्ग द्वारा भी छ प्रवृतियों का फल मिलता है। तथा कायोत्सर्ग के ध्यान बल से शासन के अधिष्ठायक देवों में भी जागृति आ जाती है। क्योंकि मानसिक और आत्मिक अनुष्ठानों का बल अधिक होता है। वंदनः- स्मरण - स्तुति - और नमस्कार द्वारा मन वचन और कायकी शुभ प्रवृत्ति उसे वंदन कहते हैं। पूजनः- पुष्पादिक द्वारा पूजा - उसे पूजन कहते हैं। सत्कार:- वस्त्रादिक ब्दारा बहुमान बह सत्कार | (64)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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