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________________ हैं। तथा व्यक्तिगत स्तुति होने से संपूर्ण चैत्यवंदना स्तुति करनेवाले की व्यक्तिगत होती है । लेकिन एक व्यक्ति चैत्यवंदन करता हो तो उसकी और सामुहिक चैत्यवंदना करते हों तो उनकी बन जाती है। इसलिए ये चारों ही स्तुतियाँ शासन प्रभावना रूप भी है । किसी भी एक तीर्थंकर की स्तुति के ऊपर से परमात्मा के गुण प्रगट होते हैं । सर्व तीर्थंकरों की स्तुतिसे शासन चौवीसों ही तीर्थंकरों का चला आ रहा हैं । इस प्रकार ज्ञात होता है । - तीसरी स्तुतिमें जैन प्रवचन की महीमा प्रगट होती है । और चौथी में अइन्द्रादिक देव शासन के सेवक हैं, और उनके प्रभाव से शासन प्रभावशाली है, ऐसा ज्ञात होता है। ___ तथा व्यक्तिगत स्वरचना की स्तुतियाँ भी बोलीजाती है जिसमें स्व उमंग भी प्रगट किया जा सकता है । लेकिन सर्वजीव शैली के ज्ञाता न होने के कारण पूर्वाचार्यादि विशिष्ट ज्ञानीओं के द्वारा रची हुई स्तुतियाँ बोलना ही योग्य लगता है। स्तवनादि की तरह स्तुतियों भी अनेक गीतार्थ आचार्यों व्दारा रची हुई पुष्कल प्रमाण में प्राप्त हो सकती है । अतः स्तुति युगल ये जाहेर में शासन प्रभावक अंग तरीके चैत्यवंदन में समाया हुआ है । स्तुतियों भी अनेक काव्य चमत्कार शब्दालंकार अर्थालंकार चित्र, काव्य विगेरे से परिपूर्ण और सर्वग्राही रूप में होती है। इस तरह चैत्यवंदना एक जाहेर और प्रसिद्ध सर्व सामान्य और मान्य जैन संघका विधान है। १७ आठ निमित्त पाव-खवण-त्य इरिया-555 वंदणन्वत्तिया-55इ छ निमित्ता। पवयण-सुर-सरण-ऽत्यं, उस्सग्गो इय निमित्त-Sढ ||३॥ - (अन्वय -पावखवणत्थ इरियाइ, वंदण-वत्तिया-ऽऽइ छ निमित्ता । पवयण - सुर सरणत्थं, उस्सग्गो इय निमित्त - ऽट्छ ||५३॥ -(63)
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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