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________________ तीन स्तुतियों को वंदना स्तुति कहा जाता है । अंतिम चोथी स्तुति को अनुशास्ति स्तुति कही जाती है। उन दो का युगल मिलके चार स्तुति होती है । आठ स्तुति में ऐसे दो युगल (जोडे) होते हैं। ___ स्तुति युगल में प्रथम स्तुति मुख्य तीर्थंकर प्रभुकी, तीर्थ या ज्ञानादिगुण के प्रधानता वाली होती है । और दूसरी स्तुति में सर्व तीर्थंकरों की प्रधानता होती है । तीसरी स्तुति में ज्ञानकी प्रधानता होती है और चौथी स्तुति शासन देव को जागृत करने की होती है। अब नमुत्युणं लोगस्स पुक्खरवरदी यावच्चगराणमें स्तुति और काउस्सग्गसे चारोंही स्तुतियाँ होती है । फिरभी अंतमें काव्यमय वाणी से उन सभीकी स्तुति कर ली जाती है। इसलिए उनका नाम चूलिका परिशिष्ट रूप स्तुति कहाजाता है । प्रथम स्तुति नमुत्थुणं के बाद अरिहंत चेइआणं के काउस्सग्ग के बाद बोली जाती है। दूसरी स्तुति सव्वलोए अरिहंत चेइआणं के बाद, तीसरी स्तुति, सुअस्स भगवओ अरिहंत चेड़आणं के बाद और चौथी स्तुति वेयावच्चगराणं अन्नत्य के बाद काउस्सग्ग पारकर बोली जाती है । अर्थात् उस उस अधिकारकी चूलिका रूप है । कल्लाणकंद में पांच जिनेश्वरों और संसारखावा में श्री महावीरस्वामी मुख्य है । इन द्रष्टान्तों को समज लेना चाहिये । श्री जगच्चंद्रसूरीश्वरजी महाराज के मुख्य शिष्य श्री देवेन्द्र सूरि विगेरे, तपागच्छ के मुख्य आचार्यो इन चारों ही स्तुतिओं को मान्य की है । इस प्रकार उनके ग्रंथ ओरसे इस बात की पुष्टि होती है। काव्यमय स्तुति - छोटे-बड़े वृद्धादि सभी को ग्राह्य होती है। सूत्रात्मक स्तुति तो जैनशास्त्रज्ञ और शासन के मर्म को समजने वाले को ही ग्राह्य होती है । कायोत्सर्गरुप स्तुति तो भावस्तुति होने के कारण मानसिक और योगशास्त्रज्ञ गम्य है। जबकि काव्यमय चूलिका स्तुति सर्वमान्य और सम्यग् दर्शन प्रभावना रूप तथा व्यक्तिगत - स्तुति करनेवाले के मनोगत भाव को व्यक्त करनेवाली स्वतंत्र स्तुति है। अन्य दर्शन वाले भी इस स्तुति से संक्षिप्त स्तोतव्यका स्वरुप समज सकते 62
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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