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________________ अर्थात् निकाचित जिननाम कर्म का बंध करने के बाद जहाँ तक केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होती है, वहाँ तक वो आत्मा द्रव्य तीर्थंकर कहलाती है । तथा भावजिनेश्वर की अवस्था पूर्णहोने के बाद सिध्ध अवस्था में भी वे द्रव्य तीर्थंकर कहलाते हैं । उस समय वो भाव सिध्ध हैं, लेकिन तीर्थंकर तरीके तो वो द्रव्य तीर्थंकर ही है। अर्थात् भाव तीर्थंकर के पूर्व की और बादकी अवस्था उसे द्रव्य कहलाता है । जगत् के सर्व पदार्थो को लागु पड़ने वाला इन चार निक्षेपों का तात्विक स्वरूप विस्तार से समजने जैसा है। १६. चूलिका रूप चार स्तुतियां अहिगय जिण-पढम-थुई बीया सव्वाण, तइय नाणस्स । । वैयावच्च-गराणं उवओगत्यं चउत्थ-थुइ ॥१२॥ (अन्वय :- अहिंगय - जिण - पढम थुई, सव्वाण बीया, नाणस्स तइया वैयावच्चगराणं, उवओगत्थं चउत्थ - थुई ॥१२॥ शब्दार्थ : अहिंगय अधिकृत, मुख्य एक-मूलनायक, पढम थुई-प्रथम स्तुति, बिया -दूसरी सव्वाण-सर्व जिनो का, तइय नाणस्स-तीसरी ज्ञानकी, वैयावच्चगराणं - वैयावच्च करनेवाले, उवओगत्थं-उपयोग के लिए, जागृति के लिए, चउत्थ चोथी, थुई स्तुति · गाथार्थ :-अधिकृत जिनकी प्रथम, सर्व जिनेश्वरों की दूसरी, ज्ञान की तिसरी तथा वेयावच्च करने वाले देवों के उपयोग के लिए (तथा स्मरणार्थे) चोथी स्तुति है । विशेषार्थ :- देववंदन में कितनीक बार ४ स्तुतियाँ और कितनीक बार ८ स्तुतियाँ बोली जाती है । चार स्तुति से देववंदन करते हैं तब एक स्तुति जोड़ा और आठ स्तुति से करते हैं तब दो स्तुति जोड़े कहे जाते हैं। चार स्तुतियों में प्रथम की 61
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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