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________________ ___ तथा आचरण निर्दोष होना चाहिये, इसके लिए अनवद्य शब्द का प्रयोग किया है। और कभी कभार किसी कारण से दोषवाले आचरण को अपनाना पड़ा हो, लेकिन ऐसी आचरणा सदैव के लिये अपनायी नहीं जाती, अतः स्पष्ट है आचरण निर्दोष होना चाहिये । मोक्ष मार्ग के अनुकुल होना चाहिये। अनवध विशेषण का प्रयोग भी इसीलिए किया गया ___ तथा शासनशैली को व शास्त्र के मर्म को प्रभु आज्ञारुप स्वीकार करने वाले उस उस काल के गीतार्थ पुरुषोंने जिसका विरोध न किया हो, ऐसे निर्दोष अशठ आचरण को, निष्पक्षपाती और दुराग्रह नही करने वाले मध्यस्थ पुरुष सम्मान देते हैं। अर्थात् यदि कोई स्वमताग्रही सम्मान नहीं दे, या अगीतार्थ पुरुषों ने विरोध किया हो, इस कारण से निर्दोष पुरुषों का आचरण अमान्य नहीं हो जाता । अतः मध्यस्थ शब्द का प्रयोग किया है । क्योंकि आचरण है वहाँ तक जैन शासन विद्यमान रहेगा । वहाँ तक इस प्रकार का परंपरागत निर्दोष आचरण भी जीत व्यवहार रुप परमात्मा की आज्ञा ही है। और जीत व्यवहार शासन के अंत तक चल सकता है । इस आधार से ङ्गमूल आगम में और, श्रुतमें = शास्त्रों में जो दर्शाया गया है वही मान्य है अन्य नहीच इस सिध्धांत को हर जगह अपनाने वाले अप्रामाणिक लगते हैं। इसी प्रकार शास्त्राज्ञा विरुद्ध और शासनशैली से विरुद्ध ऐसे किसी भी आचरण को द्रव्य क्षेत्र - काल - भाव तथा भावना के विषय में स्वीकार करते हैं, वे भी दूसरी रीत से भूल कर रहे हैं । क्योंकि जिस प्रकार शास्त्र आज्ञा मान्य है वैसे ही परंपरा भी मान्य है । इस प्रकार सकलसंघ व गीतार्थो को मान्य श्रीसंघ का आचरण रूप प्रस्ताव भी शास्त्राज्ञा ही है । पूर्वाचार्यो द्वारा वनाये गये श्रीसंघ के आज्ञाप्रधान नियम और उस समय के श्रीसंघ के प्रस्ताव, सभी मीलकर सुव्यवस्थित शासन बनता है । इस प्रकार का परंपरागत संग्रह भी श्वेताम्बर मू. जैन संघ की परंपरा में संगृहीत है । और शास्त्रों की मूल परंपरा भी उनके पास है । अर्थात् शासन की अविच्छिन परंपरा का संपूर्ण इतिहास उनके पास है, ऐसा साबित होता है । 54
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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