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________________ इस प्रकार सिध्धाणं बुद्धाणं में (सिध्धास्तव दंडक में) ८-९-१०-११ इन चार अधिकारों की तीन गाथाएँ श्री गणधर 'कृत है । और प्राचीन काल में चैत्यवंदन के अंतमें स्तुति तरीके इन्हीं ३ 'गाथाओं को बोलते थे। इसके बाद के दो अधिकारों की दो गाथाएँ गीतार्थ महापुरुषोने चैत्यवंदन के संबंध संयुक्त में की है। तथा ४८-३२ और १०हर-२० अतः ३२+२०५२, बावन चैत्य वाले नंदीश्वरतीर्थ को वंदना हुई । तथा चत्त= त्याग किया है अरि = अंतरंग शत्रु (कषाय) जिसने ऐसे (८+१०+२)=२० तीर्थंकर सम्मेतशिखरगिरि ऊपर निर्वाण को प्राप्त हुए हैं, सम्मेतशिखर को वंदना हुई । अथवा उत्कृष्ट से समकाल में जन्म लेने वाले २० तीर्थंकरों को वंदना हुई, या वर्तमान काल में विचरण करते २० विहरमान जिन को वंदना हुई। तथा २० को ४ से भाग देने पर पांच आते हैं, उसे अह दस याने १८ में जोड़ने से १८+१=२३ तीर्थंकर शत्रुजयगिरि ऊपर समवसरे (पधारे) हुए थे अतः शत्रुजयगिरि को वंदना हुई । तथा (८१0=40हर=१६०) १६० तीर्थंकर (उत्कृष्ट से महाविदेह क्षेत्र में विचरते हैं, उनको वंदना हुई । तथा (८+१०= १८६४७२) भरत क्षेत्र की तीन चोवीसी और ऐरावत क्षेत्र के तीन चौवीसी के (२४३=७२) तीर्थंकरों को वंदना हुई। (४+८=१२ह १०= १२०हर-२४० तीर्थंकर, इस संख्या दारा ५ भरत व ५ ऐरावत क्षेत्र की कुल १० चौवीसी के तीर्थंकरों को वंदना हुई । तथा ८ व १० की संख्या का वर्ग करें (८८६४, १०हू१०= १०० ६४+१००+४+२= १७० होते हैं, इस संख्या के द्वारा उत्कृष्ट पणे अढीदीप में विचरण करने वाले १७० तीर्थंकरों को वंदना हुई । चत्तारि = अनुत्तर ग्रैवेयक कल्प और ज्योतिषी इन ४ देवलोक में, अह याने ८ व्यंतर की कायके, दस याने १० भवनपतिमें और दोय याने अधोलोक ति लोक, इन दो प्रकार के मनुष्य लोक में शाश्वत और अशाश्वत दोनो प्रकार की प्रतिमाओं को अर्थात् तीनों लोक के जिन प्रतिमाओं को वंदना हुई । इस गाथा की वृत्ति में इससे भी विशेष अर्थ कहा गया है । (जिज्ञासु वर्ग वहाँ से जाने) १. श्री धर्मसंग्रह वृत्ति । . २. प्रथम दर्शायेमये प्रकार के चैत्यवंदन में छठे भेदके विषय में ये तीन स्तुतियाँ कही जाती हैं। 49
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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