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तीर्थंकर वर्तमान कालमें भी अपनी पवित्र देशनासे वहाँ के भव्य प्राणिओं पर उपकार करते हुए विचरण करते हैं । इसलिए वर्तमान कालमें २० विहरमान तीर्थंकर कहे जाते हैं। उनको वंदना की है ।। इति षष्टाधिकारः ॥
श्रुतवंदना रुप सातवां अधिकार पुक्खरवर की दूसरी, तीसरी और चौथी गाथामें है । उसके सिवाय “सुअस्स भगवओ अरिहंत चेइथाणं” से लेकर यावत् तीसरी स्तुति कहीजाती है। वहाँ तक सातवें अधिकार में आता है। ।।इति सप्तमाधिकार॥ ___ इसके बाद सिध्धाणं की प्रथम गाथामें सिध्ध भगवन्तो की स्तुति होने से सिध्धस्तुति नामका ८ वा अधिकार कहलाता है। ।। इति अष्टमाधिकार॥ इसके बाद सिध्धाणंकी दूसरी व तीसरी इन दो गाथाओं में वर्तमान शासन अधिपति और आसन्न उपकारी अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभु की स्तुति है । जिससे इन दो गाथाओं में वीरस्तुति नामक नौंवा अधिकार है । ।। इति नवमाधिकार॥ ___ तत्पश्चात् उज्जित सेल सिहरे इस पदवाली सिध्धाणं की ४ थी गाथामें जिनके दीक्षादि तीन कल्याणक गिरनार पर्वत पर हुए हैं ऐसे श्री नेमिनाथ प्रभुकी स्तुति रुप १० वाँ अधिकार है ।। इतिदशमोऽधिकारः॥
तत्पश्चात् सिध्धाणंकी अंतिम गाथा में अष्टापद तीर्थकी तथा 'भिन्न संख्यावाले जिनेश्वरों की स्तुतिरुप ११वाँ अधिकार है |इति एका दशमोऽधिकार॥ - १. यहाँ ११वें अधिकार में भिन्न भिन्न संख्याओं द्वारा जिनेश्वरों के तीर्थादि को की हुई वंदना, संक्षेपमें इस प्रकार है।
(४+८+१०+२=२४) इस प्रकार २४ तीर्थंकरों के बिंब भरत चक्रीने अष्टापद पर्वत के ऊपर भरवाये हैं, जिससे इस तीर्थ के २४ जिनेश्वरों को वंदना हुई । इस गाथा में मुख्य वंदना अष्टापद तीर्थ को की गयी है ।
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