________________
शेष ८ अधिकार वर्णन
तिहुअण हवण जिणे पुण, पंचमए विहरमाण जिण छडे । सत्तमए सुयनाणं, अडमए सव्वसिध्धथुई ||४४ ॥
तित्थाहिव वीरथुई, नवमे दसमे य उज्जयंत थुई अडावया इगढिसि, सुदिडिसुरसमरणा चरिमे ॥४५ ॥
शब्दार्थ :- तिहुअण= तीन भुवन के, विहरमाण-विचरण करते, थुई = स्तुति, | तित्याहिव = तीर्थाधिपति (वर्तमान में तीर्थ के नायक), उज्जयंत = गिरनार ( अर्थात् श्री नेमिनाथ), अद्वावयाई अष्टापद विगेरे, इगदिसि अग्यारहवें, सुविद्धि सम्यगृष्टि, चरिमे = अंतिम
I
गाथार्थ :पुनः पांचवें अधिकार में तीन भुवन के स्थापना जिनको वंदना की है । छट्ठे अधिकार में विहरमान जिनेश्वरों को वंदना की है। सातवें अधिकार में श्रुतज्ञान को वंदना की है । आठवें अधिकार में सर्व सिध्ध भगवन्तों की स्तुति है । नौवें अधिकार में | वर्तमान तीर्थ के अधिपति श्री वीरजिनेश्वर की स्तुति है । दसवें अधिकार में गिरनारकी स्तुति है । अग्यारहवें अधिकार में अष्टापद आदि तीर्थों की स्तुति है। और बारहवें अधिकार में सम्यगृष्टि देवों का स्मरण किया गया है । (इनकी स्तुति नही) ||४४ || ||४५ ||
विशेषार्थ :- सव्वलोए अरिहंत चेइयाणं से ठामि काउस्सग्गं पर्यन्त और उसके उपरान्त दूसरी स्तुति तक में भी ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और तिर्च्छालोक इन तीन लोक में स्थित (चैत्यो) प्रतिमाजी को वंदना रूप पांचवां अधिकार है ॥ इति पंचमाधिकारः ॥
छडा अधिकार पुक्खरवरदी की प्रथम गाथा में है, जिसमें ढाई द्वीप में स्थित पांच महाविदेह की १६० विजयों में से २० विजय पैकी प्रत्येक विजय में एक एक
47