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________________ विशेषार्थ :- खडे खडे काउस्सग्ग करते समय भूमि पर दोनों पैर इस प्रकार स्थापन करना की आगे के भाग में चार अंगुल अंतर और पीछे के भाग में,उससे कुछ कम अंतर रहे। इस प्रकार पदविन्यास-दोनों पैर को रखना,उसे जिनमुद्रा कहते है। जिन काउस्सग्ग मुद्रावाले जिनेश्वर देव की, मुद्राआकृति,उसे जिन मुद्रा कहते है। अर्थात् जिन= विघ्नों को जीतनेवाली मुद्रा उसे जिनमुद्रा कहते है। ७. मुक्ताशुक्ति मुद्रा मुत्ता - सुती मुद्दा जत्य समा दोवि गम्भिया हत्या । ते पुण निलाड - देसे लग्गा अने “अलग्ग" ति ||१७॥ अन्वय:- जत्थ दोवि समा गब्भिया, पुण ते निलाइ देसे लग्गा अन्ने “अलग्ग" त्ति मुत्ता-सुत्ति मुद्दा ॥१७॥ शब्दार्थ:-मुत्ता-सुत्ती = मुक्ताशुक्ति, मुद्दा-मुद्रा, जत्थ=जिसमें , समा समान, दो वि-दोनो ही, गब्भिया गर्भित, मध्यमें उन्नत, हत्था हाथ, ते वो दोनो, पुण और निलाइ=भाल, देसे स्थान पर, लग्गा लगाये हुए, अन्ने अन्य आचार्य, अलग्ग-स्पर्श किये हुए न हो, त्ति इस प्रकार, विशेषार्थ:- मुक्ता-मोती, शुक्ति= उत्पत्ति स्थानरूप छीप, उसके आकारवाली मुद्रा-वह मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहलाती है। इस मुद्रा में दोनों हाथ कि अंगुलियां परस्पर जोडकर,हथेलियों को गर्भित रखकर (अंदर से पोली बाहर से उपसी हुई) अर्थात् कछुए की पीठ की तरह ऊंची रखना चिपकी हुई न रखना इस तरह रखने से छीप के आकार सदृश्य बनती है,इस मुद्रा में हाथ को भाल पर स्पर्श करना, कितनेक आचार्य कहते है कि "स्पर्श नहीं करना" लेकिन भाल के सन्मुख रखना उसे मुक्ताशुक्ति मुद्रा कहते है। तीन मुद्राओं के उपयोग : : पंचंगो पणिवाओ थयपादो होई जोग -मुद्राए । वंदण जिण-मुहाए पणिहाणं मुत-सुत्तीए ||१८|| - (अन्वयः-पंचगो पणिवाओ थय पाढो जोग -मुद्राए वंदण जिण-मुद्दाए मुत्तासुत्तीए पणिहाणं होई |
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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