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शब्दार्थ :- पंचंगो= पांचो अंग झुकाकर, पणिवाओ = प्रणाम, थय-पाढो = स्तुति-स्तवन पाठ, जोग मुद्राए-योगमुद्रा मे, वंदण-वंदन, जिणमुद्दाए जिन मुद्रा से, पणिहाणं- प्रणिधान, मुत्त-सुत्तीए= मुक्ताशुक्ति मुद्रा से ॥१८॥
विशेषार्थ :-पंचांग प्रणिपात और स्तुति स्तवन पाठ योग मुद्रा से करना,चैत्यवंदन के समय चैत्यवंदन और नमुत्थुणं योगमुद्रा से किये जाते है । जावंति चेइआई और जावंत केवि साहु तथा जयवीयराय (२ गाथा तक) यद्यपि योगमुद्रा चालु रहती है,फिरभी हाथ को ललाट पर स्थापनकर मुक्ताशुक्ति मुद्रा द्वारा तीनों ही प्रणिधान किये जाते है। स्तवन के समय योग मुद्रा होती है। फिर खडे होकर अरिहंत चेइआणं कायोत्सर्ग स्तुति विगेरे जिनमुद्रा से करते है। चैत्यवंदन से पूर्व इरियावहिया प्रतिक्रमा जाता है, इसमें भी इरियावहिया से लोग्गस तक के सूत्र जिनमुद्रा में कहे जाते है।
इसके अलावा बैठे बैठे या खडे खडे, जो कोई क्रिया की जाती है, उसमे हर बार हाथ जोडे जाते है। इस प्रकार सामान्य वर्णन मुद्राओं का यहां किया गया है अन्य भी उपमुद्राएं करने मे आती है ,उनका भी समावेश इन तीन मुद्राओं में ही समा जाता है। ' तथा चैत्यवंदनादि करते समय और मुख्यत्व चैत्यवंदन में प्रधानसूत्र नमुत्थुणं बोलते समय,बायाँ दींचण ऊंचा व दायाँ दींचण जमीनपर स्थापन करने का रिवाज है। कितनेक, दोनों टींचणसे जमीन पर स्पर्श कर उभडक बैठकर सूत्र बोलते है। कितनेक दोनो पैरव ढींचण जमीन पर स्थापन करके सुत्र बोलते है। भिन्न भिन्न शास्त्रों के कथानुसार प्रत्येक रीत विनयरूप और उचित होने के कारण निषेध योग्य नहीं है।
इस विषय में अनेक प्रश्नोत्तर है। लेकिन विद्यार्थीओं को विचारों के सागर में डुबाने के संभववाले होने से यहाँ उसका विस्तार नहीं किया गया । मूल गाथा में स्तवपाठ शब्द का प्रयोग है।उसका अर्थ यहाँ पर नमुत्थुणं स्तवपाठ समझना,तथा पंचाग प्रणिपात शब्द का अर्थ भी यहाँपर,नमुत्थुणं सूत्र ही समझना। क्योकिं नमुत्थुणं सूत्र बोलते समय नमुत्थुणं इस प्रकार बोलते ही मस्तक झुकाकर पंचागं प्रणाम करने का विधान है। उसी प्रकार नमो जिणाणं अथवा सव्वे तिविहेण वंदामि,बोलते समय भी पंचागं प्रणिपात का विधान है। याने सूत्र मुख्यतासे तो योगमुद्रा में ही बोला जाता है। फिर भी बीच में जब जब पंचागं प्रणिपात करने में आता है जिससे बीच बीच में पंचांगी मुद्रा भी होती है। वह उपमुद्रा है। इस प्रकार की उपमुद्राएं अलग अलग करने में आती है, जिससे मुख्यमुद्रा को कोई नुकसान नहीं होता है। इसी प्रकार अरिहंत चेइआणं विगेरे भी कायोत्सर्ग का हेतु सूचक है,परन्तु यहाँ कायोत्सर्ग का
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