SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आश्रय लेकर मोक्ष में गये थे। परिकरादि में प्रातिहार्यों को प्रतिबिंबित करने में शास्त्रकारों की व्यवहार,-अध्यात्म-मानसशास्त्र,ज्ञान आदि की दृष्टि से परोपकारी मार्ग की कुशलता, असाधरण दिखाई देती है। । त्रिदिशि निरीक्षण त्याग त्रिक और । पदभूमि प्रमाजन त्रिक उड्ढाऽहो-तिरिआणं ति-दिसाण निरिक्खणं चइन्जुहवा। पच्छिम-दाहिण वामाण जिण-मुह-न्नत्य-दिहि जुओ ॥३॥ (अन्वय:- जिण मुहन्नत्थ-दिहि-जुओ उड्ढाऽहोऽतिरिआणं अहवा पच्छिमदाहिण वामाणं ति-दिसाण निरिक्खणं चइज्ज) ॥१३॥ शब्दार्थ :- उड्डाऽहो तिरियाणं ऊपर नीचे और आजु बाजु की, तिदिसाणं-तीन दिशाओं में, निरिक्खणं =देखने का, चइज्ज-त्याग करना, अहवा- या, पच्छिम दाहिणवामाण =पीछे, दाँयी और बाँयी ओर, जिणमुहन्नत्थ दिहि जुओ=जिनेश्वर प्रभु के मुख पर स्थापित दृष्टि वाला। गाथार्थ : जिनेश्वर परमात्मा के मुखपर दृष्टि स्थापित करके ऊपर नीचे और | आजु बाजु अथवा पीछे, दाँयी और बाँयी इन तीन दिशाओं में देखने का त्याग करना। विशेषार्थ : जिनेश्वर परमात्मा की प्रतिमा सन्मुख चैत्यवंदन करते समय अपनी दृष्टि सिर्फ प्रतिमाजी पर स्थिर करनी चाहियें। इसके अलावा अन्य दिशाओं में देखना नहीं चाहिये अर्थात् प्रतिमाजी के सन्मुख देखने के अलावा नीचे,ऊपर या आजु, बाजुअथवा पीछे या दाँयी बांयी ओर नहीं देखना चाहिये । चक्षु भी स्वाभाविक तौर से मन की तरह चंचल है अतः स्थिर रख पाना संभव नहीं, फिर भी इधर उधर देखे बिना दृष्टि को प्रभु के सामने स्थिर रखने से चैत्यवंदन के समय मन की एकाग्रता स्थिर रहती है। .. जिस स्थान पर चैत्यवंदन करना हो,उस स्थान पर प्रसादि जीवों की हिंसा न हो इसलिए सर्वप्रथम वस्त्र से तीन बार भूमि की प्रमार्जना कर भूमि को जीवजन्तु रहित कर फिर चैत्यवंदन करना चाहिये। पौषधव्रत रहित श्रावक को पूजा करते समय अपने उत्तरासंग के पल्ले से तीनबार भूमि प्रमार्जना करनी चाहिये। पौषधधारी श्रावक को चरवले से और मुनिभगवंतो (16
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy