SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर कहे जाते है। चतुर्विध संघ की स्थापना विगेरे केवल्य प्राप्ति के बाद प्रथम समसरण मे ही होती है इसलिए पदस्थ अवस्था का अर्थ केवलि अवस्था किया गया है। ये अवस्था निर्वाण समय तक रहती है। (३) रूपातीत अवस्था प्रभु जब निर्वाण को प्राप्त कर सिद्ध बनते है । तब शरीर रहित होते है । सिर्फ आत्मा ही रहती है। शुद्ध आत्मा के रहने से "रूपातीत अवस्था अर्थात् सिध्ध अवस्था" कहलाती है || ११|| ( प्रतिमा में तीन अवस्थाएं चिंतन करने की रीत) न्हवणच्चगेहिं छउमत्थ -ऽवत्थ पडिहारगेहिं केवलियं । पलियंकुस्सग्गेहि अ जिणस्स भाविज्ज सिद्धतं ॥ १२ ॥ शब्दार्थ :- न्हवणच्चगेहि-स्नान व पूजा करनेवालों द्वारा, छउमत्थवत्थ = छद्मस्थावस्था पहिगारेहिं = प्रातिहार्यो के द्वारा, केवलियं= कैवलिक अवस्था, पलियं कुस्सग्गेहिं= पर्यं कासन और काउस्सग्ग द्वारा, जिणस्स = जिनेश्वर भगवान की, भाविज्ज= चिन्तन करना |सिद्धत्तं = सिध्ध अवस्था || १२ || गाथार्थ :- जिनेश्वर परमात्मा को स्नान करवाने वालों द्वारा और पूजा करनेवालों द्वारा छद्मस्थावस्था, प्रातिहार्यो द्वारा कैवलिकावस्था तथा पर्यंकासन और काउस्सग्ग द्वारा सिध्ध अवस्था का चिंत्तन करना ॥१२॥ विशेषार्थ :- परमात्मा के दांयी बांयी ओर, परिकर युक्त प्रतिमाजी पर दृष्टि स्थिर किजीये। दांयी बांयी ओर जो परिकर है उसे सामान्य मानव परिघर कहते है। उस परिकर में ऊपर देखिये गज के ऊपर देव हाथ में कलश लेकर बैठे है। वे स्नान करवाने वाले देव है । तथा हाथ में कितनेक देव पुष्पमाला लेकर आये है। वो अर्चक= पूजी करनेवाले देव है। ऊपर की ओर कलशों के ऊपर पत्र दिखाई दे रहे है। वो अशोकवृक्ष के है। माला लेकर आनेवाले देवों से पुष्पवृष्टि का सूचन होता है, परमात्मा के दाँयी बाँयी ओर वीणा बांसूरी बजानेवाले देव है जो दिव्यध्वनि है। प्रभु के मस्तक के पीछे वृत्ताकार (गोल) भामंडल है उसमें प्रभुजी के मुख का तेज संहरण होता है जिससे प्रभुजी के मुख का दर्शन आराम से कर सकते है। ये भामंडल अंधेरी रात्रि मे भी प्रकाश करता है। इसी कारण देवताओं द्वारा इसे परमात्मा के पीछे रचा गया है । परमात्मा के मस्तक पर तीन छत्र स्पष्ट नजर आते है ऊपर देव दुंदुभी बजारहे है, | दोनों तरफ चामरधारी देव खड़े है। सिंहासन ऊपर परमात्मा विराजमान है। 13
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy