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________________ - तथा कडाई में से सुखडी विगेरे पकवान उध्धरने के बाद शेष घी विगेरे को चूल्हे से 'उतारने के बाद ठंडा होने पर उसमें कणिकादि मिलावे, उस समय वह कणिक्कादि से बना हुआ द्रव्य नीवियाता कहा जाता है । अन्य आचार्य इसे उत्कृष्ट द्रव्य कहते हैं । तथा इस गाथा का पाठान्तर इस प्रकार है। दव्वहया विगइगयं, विगई पुण तीइ तं हयं दब्बं । उध्धरिए तत्तमी य, उक्किहदव्बं इम चल्ने ॥३७॥ - इस गाथा के अर्थ के अनुसार- द्रव्य से (क्षीरान वत= खीर के-सदृश )हणाई हुई वस्तु नीवियाता बनती है । और विगई से द्रव्य हणाता है तो मोदक की तरह विगई बनता है । तथा तीन घाण तलने के बाद बचे हुए घी में पूरी -पूडले आदि जो तले जाते है उसे नीवियाता कहा जाता है , और इसे अन्य आचार्य उत्कृष्ट द्रव्य कहते हैं |॥३७॥ (इति | अवचूरि अक्षरार्थ) अवतरण :-पूर्व गाथाओं में नीवियाते तथा उत्कृष्ट द्रव्य के विषय में कहा गया, अब इस गाथा में सरसोत्तम द्रव्य के बारे में दर्शाया गया है । जिस द्रव्य को कारण से नीवि में कल्पनीय कहा है। तिलकुलि वरसोला-इ, रायणंबाइ दक्खवाणाई । होली तिल्लाई इय, सरसुत्तमदव्व लेवकहा ॥३८॥ शब्दार्थ :- गाथार्थ अनुसार सुगम हैं । गाथार्थ :- तिलपापडी वरसोला विगेरे, रायण और आम (केरी) विगेरे, द्राक्षपान विगेरे डोलिया और (अविगई) तेल विगेरे, सरसोत्तम द्रव्य और लेपकृत द्रव्य हैं । ॥३८॥ (१) तिलपापडी :- तिल को सेककर, गुड की चासनी में मिश्रित कर बनायी हुई उसे । तिलपापडी कहा जाता है। (लेकिन कच्चे तिल कच्चे गुड़ से बनायी हुई ऐसी तिल पापडी नहीं) (३) वरसोला :- धागे में खोपरे, खारेक या शिंगोडे विगेरे पिरोकर माला (हार) रुप में बनाये हुए उसे वरसोला कहा जाता है । 1900
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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