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________________ दव्वया विगई - गय पुणो तेण तं हयं दव्वं । उध्धरिए तत्तंमि य, उडिदव्वं इमं चने ॥ ३७ ॥ शब्दार्थ : - दव्व = अन्य द्रव्यों से, हया =हनायी हुई, विगइ = विगई, | विगइगय = विकृतिगत = याने नीवियाता, पुणो और तेण इस कारण से, तं= वह, | हयंदव्वं हतद्रव्य, य= तथा ( पकवान्न), उध्धरिए = उध्धरने के पश्चात, तत = उध्धृत घी | विगेरे, तंमि= उसके विषयमे ( उसमें, च = और, इमं इसे (इस नीवियाते को), अन्ने अन्य आचार्य, उक्किड दव्वं = उत्कृष्ट द्रव्य.^ गाथार्थ :- अन्य द्रव्थों से हनायी हुई विगई विकृतिगत- अर्थात नीवियाता कहलाती है। और इस कारण से वह हना हुआ द्रव्य कहलाता है। तथा पकवान्न उध्धरने के बाद उध्धृत घी ( बचा हुआ 'घी) विगेरे से उसमें जो द्रव्य बनाने में आता है उसे भी नीवियाता कहा जाता है । और इस नीवियाता को अन्य आचार्य 'उत्कृष्ट द्रव्य' ऐसा नाम देते हैं। भावार्थ :- इस गाथा के भावार्थ में, इस गाथा की अवचूरि का अर्थ ही अक्षरस : कहा जा रहा है । यथा - (द्रव्यैः = याने ) कलमशालि तंदूल आदि द्रव्यों से (हता = ) भेदायी गयी दूध आदि विगई उसे " विकृतिगत = (नीवियाता ) कहा जाता है । और (तेण = ) इस कारण से तंदूल आदि से हणाया हुआ दुध विगेरे द्रव्य ही कहा जाता है (परन्तु | विगई नही, अतः नीवि के प्रत्याख्यानवाले को भी किसी न किसी प्रकार से कल्पता हैं । (इति प्रव० सारो० वृत्तिः) १. प्रव० सारो० वृत्ति में इस गाथा का अर्थ में गाथा में कहा गया तत्तंमि पदका चूल्हे पर तपता हुआ घी वगेरेमे ऐसा अर्थ करके उस मे बना हुआ द्रव्य को उत्कृष्ट द्रव्य और इसका निवियाता कितके आचार्यो मानते है लेकिन ये अर्थ गीता र्थो को मान्य नही है । गीतार्थ के | अभिप्राय से चूल्हे उपरसे उतारकर घी ठंडा होने के बाद उस में जो कणिक्कादि मिलाते है तब ही परिपक्वता के अभाव से निवियाता गिना जाता है ऐसे जो नही हो तो परिपकव होजे से विगई ही बन जाता है। इस गाथा की व्याख्या हमने इस तरह की है, तबभी बुध्धिमानो को अपने ज्ञान के अनुसार दूसरी तरह भी व्याख्या कर सकते है। 189
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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