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________________ - (“वरसोलाइ" इस शब्द में प्रयोग रत "आदि" शब्द से ) शक्कर के द्रव्य मिश्रीशक्कर-शक्कर पारे-,शकर के चने, मीठे काजु विगेरे, तथा अखरोट बादाम विगेरे सर्व प्रकार के मेवे विगेरे द्रव्य भी वरसोलाइ के आदि शब्द से आजाते हैं। (३) द्राक्ष का पानी :-अचित्त किये हुए शक्कर से मिश्रित किये हुए रायण, आम विगेरे फल तथा द्राक्षका पानी, श्रीफल का पानी, तथा सर्व प्रकार के फलों के अंदर रहा हुआ अचित्त किया हुआ पानी विगेरे द्राक्षपानादि कहलाता है। (७) डोलिया :- डोली याने महुडे के बीज जिसके तेल को डोलिया कहते हैं, तथा अन्य एरंडि का तेल, कुसुंभिये विगेरे का तेल (जिसे विगई नहीं गिना गया है) सरसुत्तम अथवा उत्तम द्रव्य कहलाता है। इन्हें लेपकृत द्रव्य भी कहा जाता है । (याने लेवालेवेण आगार के विषय वाले द्रव्य है। ये द्रव्य नीवि के प्रत्याख्यान में अपवाद मार्ग से (कारण मे )मुनि को कल्पनीय है। जिसे अगली गाथा में दर्शाया गया है। अवतरण :- पूर्व में कहे गये निविकृत द्रव्य, संसृष्ट द्रव्य और सरसोत्तम द्रव्य नीवि के प्रत्याख्यान में कब और किसे कल्पता है ? जिसे इस गाथा में दर्शाया गया है। विगइगया संसहा, उत्तमदन्वा य निन्विगइयंमि । कारणजायं मु, कप्पंति न भुतुं जं वुत्तं ॥३॥ शब्दार्थ :- विगइगया विकृतिगत, नीवियाता, निन्विगइयंमिनीवि में, कारणजायं कारण उत्पन्न हुआ हो उसे, मुत्तुं छोडकर, भुत्तुं खाना, जं-जिस कारण से, वुत्तं कहा है कि, गाथार्थ :- नीवियाते (३० वीं गाथा के अनुसार ) तथा ३६ वीं गाथा में कहे हुए संसृष्ट द्रव्य, और उत्तम द्रव्य (३८ वीं गाथा में दर्शाये गये ) ये तीनो ही प्रकार के द्रव्य यद्यपि विगइ-विकृति रहित है। फिर भी नीवि के प्रत्याख्यान में कुछ कारण उत्पन्न हुआ हो, उस कारण को छोडकर शेष नीविओ में (खाना) भक्षण करना नही कल्पता है । तथा प्रकार के प्रबल (मुख्य) कारण विना ये द्रव्य नीवि में नहीं कल्पते हैं ।(इस कारण से संबंधित | सिध्धान्त की (निशिथ भाष्य की) गाथा आगे दर्शायी गयी है।) (191 -- - SHRIRAME R A
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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