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नमस्कार
पद
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| १९ | कायोत्सर्ग के दोष | १९ १६४७ अक्षर १६४७ १ . कायोत्सर्ग के प्रमाण १
स्तवन संपदा
चैत्यवंदन दंडक
१० | आशातनाओं का त्याग | १० अधिकार ४ वंदनीय ४ | कुल बोल | २०७४ २०७४ बोलो में से, ३ निसीहि ३ दिशि निरीक्षण, १९ कायोत्सर्ग के दोष और १० आशातनाओं का त्याग ये ३५ बोल त्याग करने योग्य है शेष २०३९ बोल आदरने योग्य है। २५ मुख्यद्वार और उसळे २००५ पेटा बार की विस्तार पूर्वक जानकारी
१ दशत्रिक प्रकरण, दशत्रिकों के नाम तिनि निसीही तिनि उ पयाहिणा तिनि चेव य पणामा तिविहा पूया य तहा अवत्य- तिय-भावणं चेव ||६| ति-दिसि-निरिक्खण-विरई पय-भूमि-पमज्जणं च तिक्बुतो .वना-55-इतियं मुहा-तियं च तिविहं च पणिहाणं ॥ ७॥
(अन्वयः-तिन्नि निसीही, तिन्नि पयाहिणा, तिन्नि पणामा, तिविहा पूया, अवत्थतियं,-भावणं, तिदिसी निखिखण विरई, तिक्खुत्तो पय भूमि:-पमज्जणं, वनाइतियं मुद्दा-तिय, तिविहं च पणिहाणं, उ-च-य-चेवा:समुच्चयार्था पादपूर्त्यर्थमपि) ,
शब्दार्थ:-तिनि-तीन, निसीहि-निसीहि, पयाहिणा-प्रदक्षिणा, पणामा= प्रणाम, तिविहा-तीन प्रकार से, पूया-पूजा, अवत्य-तिय-भावणं तीन अवस्था का चिंतन करना, ति-दिसी-निरिक्खण-विरइ = तीन दिशाओं तरफ नहीं देखना, तिक्खुत्तो= तीन बार, पयभूमि पमज्जणं-पैर की जमीन की प्रमार्जना करना, वन्नाइ-तियं वर्णादिक त्रिक, मुद्दा-तियं-तीन मुद्राएँ, तिविहं तीन प्रकार के, पणिहाणं-प्रणिधान।।
गाथार्थ:- तीन निसीहि, तीन प्रदक्षिणा, तीन प्रणाम, तीन प्रकार की पूजा (और) तीन अवस्थाओं का चिंतन करना ||६||
तीन तरफ की दिशाओं में देखना नहीं, तीन बार पैर की जमीन की प्रमार्जना करना,वर्णादिक तीन, तीन मुद्राएं,और तीन प्रकार के प्रणिधान ॥७॥
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