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सोल-सोलह, आगारा-आगार, गुणवीस-उन्नीस, दोस-दोष, उसग्गमाणं कायोत्सर्ग का प्रमाण, थुतं = स्तवन, सग =सात, वेला= बार (वखत) ||४||
दस आसायणचाओ = दस आशातनाओं का त्याग, सव्वे =सर्व, चिइणाइ-चैत्यवंदन के, ठाणाई = स्थानक, चउवीस-दुवारेहि = चौवीस दारों को लेकर, दुसहस्सा = दो हजार, हुंति = होता है, चउसयरा=चुम्मोत्तर ||५||
गाथार्थ :- दशत्रिक, पांच अभिगम ,दो दिशाएँ, तीन प्रकार के अवग्रह, तीन प्रकार के वंदन, प्रणिपात, नमस्कार, सोलह सौ सुडतालीश अक्षर ॥२॥
एकसो एक्यासी पद, सत्तानवे संपदाएँ, पांच दंडक, बारह अधिकार, चार वंदन करने योग्य, एक स्मरण करने योग्य, चार प्रकार के जिनेश्वर भगवंत ॥३॥
___चार स्तुतियां , आठ निमित्त, बारह हेतु, सोलह आगार, उन्नीस दोष, काउस्सग्ग | का प्रमाण, स्तवन, सात वार ||४||
दस आशातनाओं का त्याग, चौवीस दारों को लेकर चैत्यवंदन के सर्व स्थान दो हजार चुम्मोत्तर (२०७४) होते है ||५|| । विशेषार्थ :- इन चारों गाथाओं में चैत्यवंदन भाष्य में वर्णित मुख्य २४ दार और उसके २०७४ पेटा भेदों का वर्णन संक्षेप में किया गया है ! गाथाओं में उ-तु-य-च विगेरे शब्द है। उनका प्रयोग भेंदो को एकत्रित करने के लिए या पादपूर्ति के लिए है, इस प्रकार आगे भी ध्यान में रखना। संख्या __दार योग | संख्या
___ द्वार - योग त्रिक
स्मरणीय अभिगम
जिनेश्वर दिशिस्थिति अवग्रह
निमित्त वंदन प्रणिपात
स्तुति
आगार