________________
स्कूल जाता हूं, इसप्रकार बोलता है। इसी तरह “चैत्यवंदन" करने जाता हूं अर्थात् भक्ति करने की संस्था जो चैत्य है, उसकी मुख्यता बाल जीवों के मन में स्थिर करने के भाव से चैत्य शब्द का प्रयोग करने में आता है। जिस प्रकार स्कूल ज्ञान प्राप्त करने की संस्था है, वैसे ही परमात्मा की भक्ति एवं सर्वधार्मिक प्रवृति करने की केन्द्रभूत संस्था, चैत्य है और वो संस्था सर्व संस्थाओं में शिरोमणिरूप संस्था है ।
चैत्य को उद्देश्य कर परमात्मा की भक्ति करने के संख्याबंध प्रकार है, इसकी जानकारी इस ग्रंथ से और गुरुगम से प्राप्त करें ।
२४ मुख्य द्वार मुख्य भेदों की संख्या सहित वहतिग अहिगमपणगं वृदिसि तिहुग्गह तिहार बंदणया पणिवाय नमुखारा वन्ना सोलसयससीयाला ||२| इसी सयंतुपया सगनउई संपया उ पण दण्ड । बार अहिगारा चउवंदणिज्ज सरणिज्ज चउह जिणा ॥३ ॥
चउरो थुई निमित्तअह बार हेउअ सोल आगारा गुणवीस दोस उसग्गमाणं थुतं च सग वेला ॥४॥ दस आसायण चाओ सव्वे चिह्न - वंढणाइठाणाई चवीस- दुवारेहिं दुसहस्सा हुति चउसयरा || १ || शब्दार्थ:- बहतिग- दशत्रिक, अहिगमपणगं पांच अभिगम, वुदिसि = दो दिशाएँ तिहुग्गह = तीन प्रकार का अभिग्रह, तिहा= तीनप्रकार से, उ = और, बंबणया वंदन, पणिवाय = प्रणिपात, नमुक्कारा - नमस्कार, बन्ना वर्ण अक्षर, सोलसयसीयाला = सोलह सो
=
-
सेतालीस ॥ २ ॥
इसी इस एक सो एक्यासी, पया = पद, सगनउई - सत्तानवें, संपया = संपदाएँ, पण = पांच, दण्ड = दंडक, बार-बारह, अहिगारा = अधिकार, चउवंदणिज्न = चार वंदन करने योग्य, सरणिज्ज = स - स्मरण करने योग्य, चउह - चार प्रकार के, जिणा = जिनेश्वर भगवंत ॥३॥ चउरो चार, थुई-स्तुतियाँ, निमित्त निमित्त, अठ-आठ, बारहेउ बारह हेतु,
5