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जिसके कारण आज भी अनेक जीव उच्च कोटि के चारित्र के पात्र है, त्यागी हैं, महात्मा हैं और अनेक जीव इस प्रकार के प्रयास के प्रति सजाग है।
अनेक जीवों को सन्मार्ग का ज्ञान देकर, क्लेश दुःखादि से बचाया जा सकता है। फिर वो मानव हो या अन्य जाति के प्राणी विगेरे हो । आज भी जिनके जीवन में मानवता सच्चारित्र, व आदर्शता के गुण महक रहे है, फिर वो आर्य हो अनार्य जाति के मानव हो तथा आज हमें अनेक प्रकार के सद्गुण वारसे में मिले हैं, हम जंगली अवस्था में नहीं है, इसका सारा श्रेय चारों तरफ से सिर्फ तीर्थकर परमात्माओं को ही जाता है ।
तथा लोक व्यवहार में जो सुव्यवस्था प्रमाणिकता, नियमबद्धता, शांति सदाचार, सद्गुण, परोपकार की भावना, श्रेष्ठ-बंधारण, विगेरे जहाँ दिखाई देता है ये सारा प्रताप तीर्थंकर परमात्माओं का है । उसका लाभ आज का मानव समाज व प्राणी मात्र ले रहा है। इसी कारण सभी के जीवन में सहज जो सुव्यवस्था और सुघटनाऐं घटती है, ये सारा उपकार भी तीर्थंकर परमात्मा का ही है ।
इसीलिए समझदार मानव प्रतिपल परमात्मा को याद करता है। भक्ति करता है, और परमात्मा को भूलता नही है और जब जब अनुकूलता मिले तब तब परमात्मा का लोकोत्तर परम विनय करना नही भूलना चाहिये, इस दुनिया के किसी भी कृतज्ञ मानव को इस कर्तव्य को नही भूलना चाहिये ।
परमात्मा के प्रति लोकोत्तर परम विनय करने के अनेक प्रकार है, लेकिन उन सभी में चैत्यवंदन मुख्य होने से उस विषय में विचार करने से लगभग सर्व प्रकार जानने का मार्ग सुगम हो जाता है।
वादीवेताल श्रीशांतिसूरि महाराज का चिह्नवंदण महाभास नामका विस्तृत ग्रंथ विद्यमान होने पर भी, उसी का आधार लेकर बालजीवों के लिए ये ग्रंथ संक्षेप में रचा गया है। यद्यपि चैत्य के द्वारा तीर्थंकर परमात्मा की ही भक्ति करने का उद्देश्य है, फिर भी बाल जीवों के मन में चैत्य नाम की धर्म संस्था केन्द्रित करने में आती है। बालक स्कूल जाता है वहाँ जाने का मुख्य प्रयोजन तो ज्ञान प्राप्त करने का है, फिर भी “ज्ञान” प्राप्त करने जाता हूं, इसके बजाय
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