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________________ गाथार्थः- मूंग विगेरे (= सभी कठोल) चाँवल विगेरे (=सर्व प्रकार के चावल, गेहूँ विगेरे धान्य) साधु विगेरे (जवार, मूंग विगेरे को सेक कर बनाया हुआ आटा) मांडा विगेर (पूड़े, रोटी, रोटे, बाटी विगेरे) दूध विगेरे (दही, घी विगेर) खाजे विगेरे (सभी प्रकार के पकवान विगेर) राब विगेरे (मक्ला, गेहूँ , चाँवल विगेरे की) और कंद विगैरे (सभी प्रकार की वनस्पति के कंद और फलादि की बनाई हुई सब्जी विगेरे) इस प्रकार इन (८) आठ विभाग वाले सभी पदार्थों का समावेश 'अशन में होता है । और कांजी का पानी (छास की आछ) जऊ का पानी (='जऊ का धोवण) केर का पानी (केर का धोवण) और ककड़ी तरबूज, खडबूजे आदिफलो के अंदर रहा हुआ पानी या उनके धोवण 'का पानी, तथा मदिरा विगेरे का पेय, ये सभी पान आहार में गिने जाते हैं। भावार्थ:-विशेष यह है कि तिविहार के प्रत्याख्यान वाले को नदी, कूवे, सरोवर विगैरे का पानी जो कर्परादि अन्य पदार्थों से मिश्रित न हो ऐसा शुध्ध पाणी तिविहार में कल्पता है । तथा कर्पूर, द्राक्ष इलायची विगेर स्वादिम पदार्थों से मिश्रित जल दुविहार में कल्पता है। *** अवतरण:- चार प्रकार चके आहार में से खादिम और स्वादिम आहार का स्वरूप इस गाथा में दर्शाया गया है । तथा अनाहारी (जो आहार में न आते) वस्तुओं का स्वरूप खाइमि भत्तोस फला - इ साइमें सुंठि जीर अजमाई ही महु गुल तंबोलाई अणहारे मोअ निंबाइ ॥१५॥ शब्दार्थ :- गाथार्थ के अनुसार सुगम हैं। (गेहूँ, चाँवल विगेरे अनाजों का धोवण भी इसमें अंतर्गत समजना | २. इति प्रव० सारो० वृत्ति । ३. इति भाष्यावचूरिः । ४. सरका, आसवा विगेरे इसमें अंतर्गत समजना | ५. इसके अलावा श्रीफल का पानी, गन्ने का रस तथा छास (और मदिरा) यद्यापि पानी तरीके गिने हैं । लेकिन वर्तमान काल में इसे अशन में गिनने का व्यवहार है। इसके सिवाय नदी, तलाब, कूवे, बावड़ी विगेरे सभी अपकायों को पान में ही गिनना। १. प्राणों को उपकार करे उसे पान कहा गया है (इति नियुक्ति अर्थी अथवा पा = पीना, जो पीयते-पीया जाता है, उसे पान कहते हैं। (इति व्युत्पत्ति अर्थ) 159
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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