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________________ u | गाथार्थः- (भत्तोस = भक्तोष याने) सेके हुए धान्य तथा फलादि वस्तुएँ खादिम' में आती है। सूंठ, जीरा, अजवायन विगेरे तथा शहद, गुड़, तंबोल विगेरे भी स्वादिम में आते हैं। और मूत्र (गोमूत्र) तथा निम विगेरे अनाहार में आते हैं। भावार्थ:- खादिमः- जिन वस्तुओं का भक्षण करने से संपूर्ण क्षुधा की शान्ति न हो, फिरभी आंशीक शान्ति हो उन्हें खादिम कहा गया है । जैसे कि सेका हुआ अनाज, याने, धाणी, ममरे, फुले, विगेरे, तथा खजूर, खारेक, श्रीफल तथा बादाम, द्राक्ष, काजु विगेरे मेवा, आम तरबूज | खइबूज ककड़ी गन्ना विगेर, आँबलेगही आंबागोली, कोठीपत्र, लिंबुइपत्र विगेरे खादिम पदार्थ हैं। दुविहार में नहीं कल्पते हैं। | स्वादिमः- जिसका आस्वाद किया जाता है उसे स्वादिम कहते हैं। जैसे कि झूठ, हरड़े, पीपर, कालीमीर्च, अजवायन, जायफल, जावंत्री, कांथा, खीखटी, जेठीमध, केसर, नागकेसर, तमालपत्र ईलायची, लविंग, बिडबवण, अजमोद, पीपरामूल, चिणिकबाबा, |मोथ कांटासोलिओ, कपूर, हरडे, बेड़ा - बबूल छाल, धावडीखाल, खेरकी छाल, खेजड़े की छाल, तथा उसके पत्र - सुपारी, हिंग, जवासामूल, बावची, तुलसी तज, पुष्करमूल तथा तंबोल सौंप - सुवा इत्यादि पदार्थ दुविहार में कल्पते हैं। :: कितनेक जीरे को खादिम और खादिम दोनो में गिनते हैं । और कितनेक आचार्य अजवायन खादिम भी कहते हैं। ... १. खायते = जो खाया जाता है उसे, खादिम (इति व्युत्पत्ति) ब= आकाश अर्थात् मुखका विवर जिसमें माति = समाजाता है उसे खादिम कहते हैं । (इति नियुक्ति) इसमें दकार का निपात संभव है। २. स्वायते = जिसका आस्वाद किया जाता है उसे स्वादिम कहा जाता है (इति व्युत्पत्ति) गुड़, मिश्री, आदि द्रव्यों के, इस विगेरे गुणों को तथा कर्ता के संयम गुणों को याने रागद्वेष रहि आस्वादन से, संयमी के संयम गुणोका जो स्वादयते स्वाद जताये उसे स्वादिम |अथवा जो वस्तुएँ अपने माधुर्यादि गुणों को सादयति नाथ करे उसे स्वादिम कहते हैं । (इति नियुक्ति) kundliunia -160
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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