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________________ तथा क्षुधा को शांत करने में समर्थ न हो फिर भी अन्य द्रव्य के साथ मिश्रित होकर उसके गुण या रसमें कुछ विशेषता दर्शाता हो ऐसे पदार्थ दूसरे लक्षण में आते हैं। ____ जो एकाकी पदार्थ अशनादिक के स्वादमें वृद्धि करते हों चाहें फिर वो मिश्र हो या न | हो, फिरभी आहार में आते हैं। ये तीसरा लक्षण है । (३रे व ४ थे भक्षण के उदाहरण )" निमक हिंग, जीरा, कपूर, काथा विगेरे । जल में कपूर विगेरे, फलादि खादिम में, निमक विगेरे, और तंबोलादिक स्वादिम में काथा विगेरे) _ भूखी व्यक्ति भूख को शांत करने के लिए, किच्चइ समान निरस द्रव्य लेता है, तो उसे भी आहार कहा जाता है। जैसे कि मिट्टी ये आहार का चौथा लक्षण है। यहाँ औषधि में प्रत्येक आनेवाले कितनेक द्रव्य आहारी और कितनेक अनाहारी भी | है। (अधिकांश भावार्थ श्राद्ध विधि अनुसार दिया गया है।) - अवतरणः-इस गाथा में अशन व पान दो प्रकार के आहार के उदाहरण दिये गये हैं। (शेष दो प्रकार के उदाहरण १५ वीं गाथा में दर्शाये गये हैं) ... असणे मुग्गो-अण सत्तु, मंड-पय-खज्ज-रब्ब-कंदाई। पाणे कंजिय-जव-कयर-कलडोदग सुराइ जलं ||१४|| शब्दार्थ:- मुग्ग = मूंग, ओअण = ओदन, चाँवल, सत्तु = साथु, मंड = पूड़े , मांडा, पय = दूध, बज्ज = खाजे, खाद्य, रब्ब = शब, कंजिय = कांजी का, जब = जव, जऊ, कयर = केर का, कई = ककड़ी का, उदग - पानी, जल, सुरा (आ) इ-मदिरा विगेरे, १. अर्थात नमक हिंग जीरा कपूर, काथा दि पदार्थ भूख समाने के लिए समर्थ नहीं है तबभी आहार में उपकारी होने से आहार रुपमाना है (२) गाथा में कंदाई पद में रहा हुआ आइ-आदि शब्द मुंग इत्यादि सभी शब्द के साथ संबंधित गिणना (शब्द के अर्थ दो तरह से होते है,) (१) व्युत्पत्ति से माने धातु के आधार पर और (२) नियुक्ति से माने शब्द में रहे हुए अक्षरो उपर से उत्पन्न की हुइ युक्ति से इस तरह यहां अशन शब्द का अर्थ भी दो तरह से होता है , आशु-शिघ्र (क्षुधा को उपशांत करता है ) वह अशन यह नियुक्ति अर्थ है, और अस्यते भुज्यते जिसका भोजन कीयाजाता है वह अशन ये व्युत्पति अर्थ है, माने धातु सिद्ध अर्थ है । यहां पर फलादि सभी आहार योग्य पदार्थ का भोजन किया जाता है, लेकिन अशनशब्द से चावलादि अमुक अमुक पदार्थ ही है गिना जाता है। (158
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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