________________
-
१०. अध्या पच्चक्खाण:- अध्धा = काल याने मुहर्त, प्रहर, दिन, पक्ष, मास, वर्ष इत्यादि रुप है। और मुहूर्त आदि काल की मर्यादा वाला नवकारसी - पोरिसी - सार्द्धपोरिसी - पुरिमड़ढ - अवइट - एकासन - उपवास विगेरे पच्च० उसे अध्धा पच्चक्खाण कहाजाता है । उसके १० प्रकार हैं। जिसका वर्णन तीसरी गाथा में दर्शाया गया है। इस प्रकार पच्चक्खाण के प्रत्याख्यान के २० भेद कहे गये इनमें से अंतिम दो प्रत्याख्यान प्रतिदिन उपयोगी समझना।
॥ इति १० प्रत्याख्यानभेदा ॥ अवतरण :- अध्धा पच्चक्खाण के १० भेद, इस गाथा में दर्शाये गये हैं।
नवकारसहिय पोरिसि पुरिमड्ढे-गासणे-गठाणे य ।
आयंबिल अभतडे, चरिमें अ अभिग्गहे विगई ||३|| शब्दार्थ:- गाथार्थ के अनुसार
गाथार्थ:-नवकार सहित (नवकार सी) पौरुषी, पुरिमार्ध (पुरिमड्ढ) एकाशन, एकस्थान (एकलठाणा) आयंबिल, अभक्तार्थ (उपवास), दिवसचरिम, अभिग्रह, और विकृति (नीवी) विगेरे अध्धा पच्चक्खाणके १० भेद हैं।
विशेषार्थ:- अध्धा पच्चक्खाण के १० भेदोंका किंचित् वर्णन इस प्रकार है।
१. नवकारसहियं = (नमस्कार सहित) प्रत्याख्यान - सूर्योदय से लेकर १ मुहूर्त २ घड़ी = ४८ मिनिट) तक का और पूर्ण होने पर तीन नवकार गिनकर पारना । (इस प्रकार मुहूर्त और नवकार इन दो विधिवाला पच्चक्खाण) उसे नवकारसी पच्चक्खाण कहते हैं। इस पच्चक्खाणको सूर्योदय से पूर्व धारना चाहिये, अन्यथा अशुध्ध गिना जाता है।
१. पच्चक्खाण ये प्राकृत शब्द है। और यप्रत्याख्यानय ये संस्कृत शब्द है, उसकी व्युत्पत्ति (शब्दार्थ) इस प्रकार है। __ प्रति = प्रतिकूल तथा तासे आ = मर्यादा से, ख्यान = कहना, अर्थात् अमुक रीति से निषेध करना =कहना उसे प्रत्याख्यान कहते हैं।
२. नवकार सहित में 'सहित' शब्द मुहुर्त का विशेषण वाला है इसलिए और अध्या पच्चक्खान १ मुहुर्त से कम होता नहीं है इसलिए नवकारसी का १ मुहुर्त काल अवश्य गिणना चाहिये, जो लोक समजते है की नवकारशी तो ३ नवकार गिनकर चाहेतब पालसकते और काल की उस में किंचित भी मर्यादा विना सूर्योदय के पहले या तुर्त भी ३ नवकार गिनकर पाल सकते है वह बात बराबर नहीं है । इसलिए नवकारसी सर्योदय से दो घडी (४८ मिनिट) बादही ३ नवकार गिनके पालना, २ घडी होने से पहले ३ नवकार गिनकर पाले तो नवकारसी भंग होती है २ घडी होने के बाद भी ३ नवकार गिन विना पाले तो भी नवकासी भंग होती है ।
-143)