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३. पोरिसी प्रत्याख्यानः- प्रातःकाल पुरुष की छाया जब स्वदेह प्रमाण होती है, तब पोरिसी प्रहर गिना जाता है। इसलिए सूर्योदय से लेकर १ प्रहर तक की काल मर्यादा वाला पच्चक्खाण पौरुषी पच्चक्खाण कहलाता है। सार्ध पोरिसी याने डेढ प्रहर का पच्चवखाण वो भी इसी में अंतर्गत हैं। (इस पच्चक्खाण को सूर्योदय से पूर्व धारना चाहिये, अथवा नवकारसी के पच्चक्खाण के साथ युक्त करने से भी होता है | )
३. पुरिमार्ध पच्चवखाण :- पुरिम प्रथम, अर्ध अर्ध अर्थात् दिन का प्रथम
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आधाभाग याने सूर्योदय से दो प्रहर तक का पच्चवखाण उसे पुरिमार्ध अथवा पुरिमड्ढ का पच्चवखाण कहते हैं । तथा अपार्ध (अवड्ढ ) पच्चक्खाण अप = पश्चात् ( पिछे का भाग) अर्ध = अर्ध, अर्थात् सूर्योदय से ३ प्रहर का और मन्तातर से अंतिम दो प्रहर का, याने दिन के उत्तरार्ध भाग का पच्चवखाण अपार्ध (अवइट) पच्चक्खाण कहलाता है। जिसका समावेश इसी पच्चवखाण में होता है। ये पच्चक्खाण - नवकारसी, पोरिसी की धारणा विना भी कर सकते हैं।
४. एकाशन (या = एकासन ) = दिन में एक = एकबार, अशन भोजन करना उसे एकाशन' पच्चवखाण कहते हैं । अथवा एक = एक ही (निश्चल) आसन = आसन से अर्थात् निश्चल आसन से हिलेडोले विना स्थिर आसन से भोजन करना उसे एकासन कहा जाता है। (इसमें कटि से नीचे का भाग स्थिर रहता है, लेकिन हाथ = पाँव विगेरे अवयवों का हलन चलन हो सकता है। तथा भोजन करने के बाद तिविहार या चौविहार का पच्चक्खाण कर उठना चाहिये)
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५. एकस्थान (एकलठाणा) :- जिसमें हाथ व मुख के अलावा शरीर के किसी भी अंग का हल - चलन नही होता है, ऐसा निश्चल आसन वाला एकाशन उसे एकलठाणा कहते हैं । एकाशने में सर्व अंगों के हलन चलन की छूट है, वैसी छूट इसमें नही है । इसी कारण से एकाशन और एकस्थान दोनो भिन्न है। (एकस्थान में भोजन के बाद चौविहार का पच्चक्खाण किया जाता है, जबकि एकासने में तिविहार या चौविहार दोनो ही प्रकार के पच्चक्खाण कर सकते हैं)
१. ( एकाशन - एकलठाणा आयंबिल नीवी ये पच्च० यद्यपि अनागतादि १० प्रकार में से आठवें प्रकार के परिमाणकृत प्रत्याख्यान हैं, लेकिन पोरिसी आदि अध्धा प्रत्याख्यान सहित उच्चारे जाते हैं-किये जाते हैं। अतः अध्धा पच्चवखाण में गिने हैं। (इति धर्म० सं. वृत्ति - आदि)
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