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ये चक्खाण चिन्ह भेद से ८ प्रकार का है। कोई श्रावक पौरुषी आदि पच्चवखा 'करके पच्चवखाण का समय पूर्ण होने पर भी भोजन सामग्री तैयार न हो, तब तक पच्चवखाण बिना न रहे, इस आशय से अंगुष्ठ आदि आठ प्रकार के चिन्हों में से किसी भी चिन्ह की धारणा करे । वह इस प्रकार
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१. अंगुष्ठ सहित :- जहाँ तक मुट्ठी में बंध अंगुडे को अलग न करूं वहाँ तक मेरे पच्चवखाण हो इस प्रकार धारणा कर, अंगुडे को अलग करने के बाद भोजनादि मुख में डाले। उसे अंगुष्ठ सहित संकेत पच्च० कहते हैं ।
२. मुष्ठिसहितः - इसी प्रकार मुट्ठी बंध कर खोले नही, वहाँ तक का पच्च० उसे मुसिहियं पच्च० कहा जाता है ।
३. ग्रन्थिसहितः - वस्त्र था धागे विगेरे को गांठ लगाकर खोले नही वहाँ तक ग्रन्थि सहित पच्च० उसे गठिसहियं पच्च० कहते हैं ।
४. घर सहित :- इसी प्रकार जहाँ तक घर में प्रवेश न करे वहाँ तक का पच्चवखाण उसे घर सहित (घरसहियं) पच्च० कहते हैं।
७. स्वेदसहितः प्रस्वेद (पसीने) के बिन्दु जहाँ तक सूके नही वहाँ तक का पच्चवखाण उसे स्वेदसहित पच्च० कहा जाता है।
६. उच्छवास सहितः - इतने श्वासोच्छवास पूर्ण होने के बाद ही पच्च० पारूंगा ऐसा नियम उसे उच्छ्वाससहित पच्च० कहते हैं।
७. स्तिबुक सहितः - इसी प्रकार मांची में था अन्य वर्तनादि में लगे हुए पानी के बिन्दु जहां तक न सूके वहाँ तक का पच्च० उसे स्तिबुक सहित पच्च० कहते हैं।
८. दीपक सहितः - इसी प्रकार दीपक की ज्योत जहाँ तक बुझे नही वहाँ तक का पच्चक्खाण उसे दीपक सहित पच्चवखाण-दीवसहियं पच्च० कहते हैं।
इस प्रकार संकेत पच्चक्खाण पूर्ण होने से पूर्व यदि कोई वस्तु मुख में गिर जाय तो 'पंच्चवखाण का भंग होता है। और उसे गुरु भगवन्त से प्रायश्चित लेना पड़ता है।
१. संकेत पच्चक्खाण एक अथवा तीन नवकार गिनकर पारना । पश्चात् भोजन करके पुनः संकेत पच्चवखाण कर सकते हैं। उस प्रकार वारंवार संकेत पच्चवखाण धारण करने से भोजन के अलावा शेष सर्वकाल विरतिभाव में आता है । प्रतिदिन एकासना करने से एक मास में १९ उपवास का व बीआसना करने वाले को २८ उपवास जितना लाभ मिलता है। खुले मुख खाने वाला श्रावक भी प्रतिदिन संकेत पच्चवखाण करता है तो उसे भी विरतिभाव का विशेष लाभ मिलता है। इसलिए विरतिभाव वंत श्रावक को ये पच्चवखाण अति उपयोगी है। तथा गाथा नं. ३ में दर्शाया गया अध्धा पच्चक्खाण भी श्रावक को प्रतिदिन उपयोगी है।
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