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१. १० विगई:- दूध आदि ६ भक्ष्य विगई, और मधु आदि ४ अभक्ष्य विगई। (याने ६ लघुविगई और ४ महाविगई) कुल १० विगई के स्वरूप को समझाया जायेगा।
६.३० नीवियाते:- ६ भक्ष्य विगई के ३० नीवियाते होते हैं, उनका स्वरूप कहा जायेगा।
७.२ प्रकार के भांगेः- मूलगुण व उत्तरगुण पच्चक्खाण, इन दो भांगे के साथ प्रसंगवत् १४७ भांगे का स्वरूप भी दर्शाया जायेगा।
८.छ शुद्धिः- इस दार में पच्चकखाण की स्पर्शना, पालना आदि ६ प्रकार की शुद्धि के विषय में बताया जायेगा।
१. दो प्रकारका फलः- पच्चक्खाणके द्वारा इसलोक में व परलोक में जो फल प्राप्त होता है । उस दो प्रकार के फल को दर्शाया जायेगा । (गाथा में मात्र फल शब्द का प्रयोग किया है फिरभी अध्याहार से दु = दोको भी ग्रहण करना) (गाथा ४७ में)
इस प्रकार मूलदार के उत्तर भेद (१०+४+४+२२+१०+३०+२+६+२)= ९० होते हैं । (इति प्रथम गाथा का भावार्थ)
__ प्रथम बार (१० पच्चक्खाण) अवतरणः- इस गाथा में १० पच्चकखाण रूप प्रथम दार को दर्शाया गया है।
अणागय-महळतं, कोडीसहियं नियंटि अणगारं ।
सागार निरवसेसं, परिमाणकडं सके अदा ॥२॥ शब्दार्थ:- गाथार्थवत् सुगम है।
गाथार्थः- अनागत पच्चक्खाण, अतिक्रान्त पच्चक्खाण, कोटिसहित पच्चक्खाण, नियन्त्रितपच्च०, अनागार पच्च०, सागार पच्च०, निरवशेष पच्च०, परिमाणकृत पच्च०, संकेतपच्च0, और अदापच्च० (इस प्रकार १० प्रकार के पच्चक्खाण हैं) ॥२॥ ... विशेषार्थः-१० प्रकार के पच्चक्खाण का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है।
१. अनागत पच्चक्खाण:- अनागत भविष्यकाल अर्थात् जिस पच्चक्खाण को भविष्यमें करनेका है, उस पच्चक्खाण को किसी कारण से पहले ही करलेना पड़े उसे अनागत पच्चक्खाण कहाजाता है।
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