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श्री पच्चक्खाण भाष्यअवतरण :- इस तीसरे भाष्य में पच्चवखाण लेने की विधि का वर्णन है । इस प्रथम गाथा में पच्चवखाण के ९ मूलदार दर्शाये गये हैं।
दस पच्चक्खाण चउविहि आहार दुवीसगार अदुरुत्ता । बसविगड तीस विगई - गय, दुहभंगा प्रसुति फलं ॥१॥
शब्दार्थ:- चउविहि = ४ प्रकार का विधि । अदुरुत्ता = दूसरी बार उच्चार नहीं किये गये दुवीस (आ) गार = बावीस आगार। विगईगय = विकृतिगय, नीवियाता
गाथार्थ:-१० प्रकार का पच्चक्खाण, ४ प्रकार का (उच्चार) विधि, ४ प्रकार का | आहार, दूसरी बार उच्चारे नहीं गये (नहीं गिने गये) ऐसे २२ आगार, १० विगई, ३०
नीवियाते, २ प्रकार के भांगे, ६ प्रकार की शुद्धि, और (२ प्रकार का) फल, (इस प्रकार : मूलदार के 30 उत्तर भेद होते हैं ) ||१||
विशेषार्थ:- पच्चवखाण भाष्य में कहे जाने वाले १० प्रकार के पच्चक्खाण का स्वरूप : दारों द्वारा समझाया गया है । उन दारों की संक्षेप में जानकारी इस प्रकार है।
१. दस पच्चक्खाण दार:- इस दार में पच्चक्खाण के अनागत आदि १० मूलभेद । तथा १० वें अद्धा पच्चक्खाण के १० उत्तर भेदों को समझाया गया है।
गाथा में चउविह शब्द में कहेगये चउ शब्द का अनुसरण आहार शब्द के | साथ भी किया जाता है, जिसके वजह से ४ प्रकार का आहार ऐसा अर्थ होता है। .. . २. चार प्रकार का विधि बार :- इस बार में पच्चक्खाण के पाठ उच्चरने के ४ प्रकार कहे जायेंगे।
३. चार प्रकार का आहार बारः- इस दार में अशनपान - खादिम - स्वादिम इन चार प्रकार के आहार का स्वरूप दर्शाया जायेगा।
४. बावीस आगार:- इसमें एक ही आगार अलग अलग पच्चवखाण में अनेक बार बोला जाता हैं। उसको अलग अलग न गिनकर एक ही बार गिने (दूसरी बार नहीं गिने गये हों) ऐसे २२ आगार याने अपवाद हैं। उसे कहा जायेगा।
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