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| जैसे कि पर्युषण महापर्व में किये जाने वाला अहम विगेरे तप उस तप को पर्युषण में गुरु की,गच्छकी, रोगी मुनि की, नूतन दीक्षावाले शिष्य की, और तपस्वी विगेरे की. वैयावच्च (सेवा) के कारण से पर्युषण से पूर्व ही कर लेना । ये अनागत पच्च० मुख्यत्वे मुनि को होता है।
२. अतिक्रान्त पचक्खाण:- अतिक्रान्त = भूतकाल, अर्थात् भूतकाल संबंधि पच्चवखाण उसे अतिक्रान्त पच्चवखाण कहते हैं। जैसे कि पर्युषणपर्व में किया जानेवाला अहम आदि तप को वैयावच्चादि कारणसे पर्युषण पर्व व्यतीत होजाने के बाद करना उसे -अतिक्रान्त पच्चवखाण कहते हैं। ये पच्चकखाण मुख्यत्वे मुनिओं को होता है। १. कोटिसहित पच्चक्खाण:- कोटि = किनारा, अर्थात् दो तपके दो किनारे मिलते हों एसा तप | याने दो तप की संधि (मिलना) वाला पच्चक्खाण उसे कोटिसहित पच्चक्खाण कहते हैं । जैसेकि - प्रथम एक उपवास करके पुनः दूसरे दिन प्रातःकाल भी उपवास का पच्चक्खाण करे तो प्रथम उपवास का पर्यन्त भाग
और दूसरे दिन के उपवास का प्रारंभ भाग इन दोनो के भाग रूप दो कोटि (किनारे) मिलने वाले ये पच्चक्खाण कोटि सहित गिना जाता है। इस पच्चकखाण के दो प्रकार
हैं।
(१) समकोटि पच्च०:-समकोटिवाला याने उपवास पूर्ण कर उपवास
करना, आयंबिल पूर्णकर आयंबिल करना । (२) विषम कोटि पच्च०:-उपवास पूर्ण होने के बाद दूसरे दिन एकासना करना
या एकासनादि पूर्ण होने के बाद उपवासादि करना उसे, इस प्रकार भिन्न दो,तपों की संधि, उसे विषमकोटि पच्चक्खाण कहा जाता है। ४. नियन्त्रित पच्च०:- नियन्त्रित = निश्चयपूर्वक, अर्थात् जिस पच्चक्खाण को निश्चय पूर्वक किया जाता है उसे, जैसेकि कैसी भी बिमारी हो या स्वस्थता हो, कैसा भी विघ्न या सुख दुःख आजावे फिरभी अमुक समय में मैं ऐसा तप करूंगा | ही। इस प्रकार के संकल्प रूप पच्चक्खाण वाला ये तप जिनकल्पी मुनि और चौदह पूर्वधर मुनियो को होता हैं । तथा प्रथम संघयण वाले स्थविरादि मुनिओ को भी होता है। लेकिन जिनकल्प के विच्छेद हो जाने के साथ ही इस पच्चक्खाणका, विच्छेद होने से वर्तमान काल में ऐसा तप नहीं कर सकते, कारण कि तथा प्रकारका संघयण, आयुष्य व भावोका निश्चय करने का अभाव है।
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