SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथार्य :- भावार्थ अनुसार सुगम है। ....... विशेषार्थ : प्रातः काल का प्रतिक्रमण करने का नियमवाले कभी कभार प्रतिक्रमण की सामग्री के अभावमें अथवा वैसी शक्ति के अभाव में उन्हे इस गाथा में दर्शायी गयी विधि अनुसार बृहत् गुरु वंदन तो अवश्य करना चाहिये । ये बृहत् गुरुवंदन ही लघुप्रतिक्रमण माना जाता है। प्रातः काल के बृहत गुरुवंदन की (लघुप्रतिक्रमण का) संक्षेप में 'विधि इस प्रकार है। १). इरियावहियं- गुरु के समीप में इरियावहियं (लोगस्स तक) प्रतिक्रमना। २). कुसुमिण दुसुमिण का काउस्सग :- पश्चात् रात्रि के समय राग के कारण आये हुए (स्त्री गमनादिक) कुस्वप्न, और द्वेष के कारण आने वाले दुःस्वप्न के निवारण के लिए ४ लोगस्स का काउस्सग्ग किया जाता है उसे कुसुमिण दुसुमिण का काउस्सग्ग समजना। 1). चैत्य वंदन:- पश्चात् चैत्य वंदन का आदेश लेकर जगचिन्तामणि चैत्यवंदन से जयवीयराय तक बोलना। ४). मुहपत्ति :- पश्चात् खमासमणा देकर आदेश मांगकर मुहपत्ति की प्रतिलेखना करना। 2). वंदणः- पश्चात् दो बार दादशावर्त वंदन करना । ६). आलोचना :- फिर आदेश लेकर "इच्छा कारेण संदिसह भगवन राईयं आलोउं? इच्छं आलोएमि जो मे राइओ इत्यादि पद बोलकर राईय" आलोयणा करना यही लघुप्रतिक्रमण सूत्र है। 0) वंदण :-फिर पून : दो बार व्दादशावर्त वंदन करना | ८) खामणा:- पश्चात् राईय अब्भुडिओ खामना। 5) वंदन:- पश्चात् पुनः दो बार दादशावर्त वंदन करना। १०) संवर (पच्चवखाण) :- पश्चात् गुरु से यथाशक्ति पच्चकखाण लेना । ११) चार छोभ वंदन :- पश्चात् ४ खमासमण पूर्वक "भगवानह” आदि ४ छोभवंदन करना। १) क्रमशः विशेष विधि गुरुगम से समजना । ये बृहत् गुरुवंदन की अपेक्षा से व्दादशावर्त वंदन ही यहाँ लघु गुरुवंदन समजना | (134
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy