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________________ ३३. समासन: गुरु से अथवा गुरु के सामने समान आसन ऊपर बैठना उसे समासन आशातना कहते हैं। .. विनयवंत शिष्य को चाहिये कि वो गुरु की ३३ आशातनाओं (अविनय) से बचे। ऐसे शिष्य पर गुरु की स्वाभाविक कृपा बरसती है। जिससे ज्ञानादि गुणों की प्राप्ति सुगम होती है। मुनि को ध्यान में रखकर मुख्यता से ये आशातनाएँ कही है। श्रावक को भी यथायोग्य इन आशातनाओं से बचना चाहिये। ॥ जघन्यादि भेद से गुरु की ३ आशातनाएँ ॥ (१) जघन्य आशातना : - गुरु को पाँव विगेरे से स्पर्श करना । (२) मध्यम आशातना :- थूक विगेरे लगाना | (३) उत्कृष्ट आशातना :- गुरु की आज्ञा नहि मानना । विपरित चलना . . अनुचित व्यवहार करना कठोर शब्दों से प्रतिकार करना । विगेरे (इस प्रकार साक्षात् गुरु की ३३ प्रकार की आशातनाएँ या ३ प्रकार की आशातनाएँ जानना) || गुरु स्थापना की ३ आशातनाएँ | (१) जघन्य आशातना :- स्थापना को पाँव लगाना, इधर ऊधर करना | .. (२) मध्यम आशातना :- भूमि पर गिरा देना, विनय रहित भाव से यहाँ वहाँ रखना । (३) उत्कृष्ट आशातना : स्थापना को नष्ट करना टुकड़े करना । (श्राद्ध विधि वृत्तिः) अवतरण :- बृहद गुरुवंदन करने के लिए दो प्रकार की विधिका २२ वाँ दार - कहा जाता है। सुबह -शाम का लघुप्रतिक्रमण दर्शाया है उसमें प्रथम सुबह का लघुप्रतिक्रमण इस प्रकार है। इरिया कुसुमिणुसग्गो, चिइ वंदण पुति वंदणा - लोयं । वंदण खामण वंदण, संवर चउछोभ दुसज्झाओ ॥ ३८॥ शब्दार्थ:- (गाथार्थ वत्) भावार्थ में लिखे गये क्रमानुसार - 133
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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