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________________ २४. तज्जात (भाषण): जब गुरु शिष्य को कहे कि "तू इस ये ग्लान (बिमार) साधु कि सेवा क्यो नहि करता? आजकल बहुत प्रमादी हो गया है" तब शिष्य प्रत्युत्तर मे गुरु से कहे कि “आप स्वयं क्यों नहीं कर लेते ?” आप भी तो प्रमादी हो गये है।' इत्यादि शिक्षा प्रद वचन कहे या विपरित जवाब दे - उसे तज्जात भाषण या तज्जात वचन आशातना कहते है। (यहाँ तज्जात उसी तरह के (विपरित जवाब) २७. नो सुमन: गुरु प्रवचन देते हो तब "आपने अति प्रशंसनीय प्रवचन दीया” इत्यदि प्रशंसा के वचन कहना तो दूर रहा और प्रवचन का प्रभाव या हर्षभाव भी व्यक्त नहीं करता है (ईष्या से गुरु की प्रवचन शैली को अपनी शैली से कमजोर मानता है) उसे नो सुमन आशातना दोष कहते हैं। २. नो स्मरण:- गुरु धर्म कथा कह रहे हो तब उनको कहे कि आप को ये बात मालुम नहीं है। ये अर्थ युक्ति संगत नहीं है” इत्यादि बोलता है तो आशातना | २७. कथाछेद: जिस धर्मकथा को गुरु कह रहे हो, उसी कथा के लिए सभाजनो से कहना कि “मै तुम्हे इस कथा को और अच्छी तरह समजाऊंगा” इत्यादि कहना । अथवा कथा पुनः समजाकर चालु प्रवचन को भंग करना कथाछेद आशातना है। २८. परिषद् भेदः- प्रवचन सुनने में सभा एकतान हुई हो उसी समय शिष्य आकर कहे कि "कथा कहाँ तक लंबी करोगे ? गोचरी (आहार पानी) का समय हो गया है। या पौरिषी का समय हो गया है इत्यादि शब्दों के द्वारा सभाके लोंगो का चित्त भ्रमित करना । या ऐसा कुछ कहे कि जिससे सभा एकत्रित न हो उसे परिषद् भेद आशातना कहते है। २१. अनुत्थित कथा : गुरु के प्रवचन के बाद अपनी चतुराई दर्शाने के लिए प्रवचन मे कही हुई कथा को विस्तार से समजाना अनुत्थित कथा आशातना है। १०. संथार पादघन:-गुरु की अनुमति विना संथारे को हाथ से या पैर से स्पर्श करना, स्पर्श करने के बाद दोष की क्षमायाचना नहीं करना आशातना है। कारण कि गुरु की तरह उपकरण भी पूज्य हैं (अतः आज्ञाविना हाथ या पैर स्पर्श नहीं करना चाहिये । भूल के लिए क्षमा मांगनी चाहिये यहाँ शय्या || हाथ की (शरीर प्रमाण) और संथारा २ ॥ हाथका समजना) ११. मंधारावस्थान :- (अवस्थान खडेरहना) गुरु की शय्या या संथारे पर खड़ेरहना (उपलक्षण से) बैठना या सोना भी आशातना है। १२. उच्चासन :- गुरु से अथवा गुरु के सामने उनसे ऊंचे आसन ऊपर बैठना उच्चासन आशातना दोष है।
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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