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(गोचरी संबंधित इरियावहिया प्रतिक्रमण वचन उसे आलोचना कहा जाता है) १५. पूर्वोपदर्शन: गोचरी लाकर प्रथम अन्य साधु को दिखाना, बाद में गुरु को दिखाना, पूर्वोपदर्शन आशातना है। १६. पूर्व निमंत्रण:- आहार पानी ग्रहण करने के लिए प्रथम अन्य साधु को निमंत्रण देना बाद में गुरु को निमन्त्रण देना (बुलाना) पूर्व निमन्त्रण आशातना दोष है। १७. 'बब दान: गुरु की अनुमति लिये बिना ही, लाये हुए मृदु स्निग्धादि आहार को यथोचिंत साधुओं में बांटदेना उसे खद्ध दान आशातना कहते हैं। १८ 'खबादन : आहार लाकर गुरु को अल्प देकर स्निग्ध और मधुर आहार का सेवन (उत्तम द्रव्य से बना हुआ आहार) स्वयं ही करने बैठजावे खदादान आशातना दोष है। (खद खाध (मधुर आहार को) अदन खाना (ग्रहण करना ) उसे १७. अप्रतिश्रवण': गुरु बुलावे तब नहीं बोलना अप्रतिश्रवण आशातना है। (१२ वीं व १९ वी आशातना के नाम समान है लेकिन अर्थ दृष्टि से भिन्न है १२ वी आशातना' रानि से संबंधित है जब कि १९ वीं आशातना दिनसे संबंधित है। ........ २०. बद्ध "भाषण:- गुरु भगवन्त के सामने कठोर और ऊंची आवाज से बोलना (खद्ध-प्रचुर अधिक बोलना) खद्ध भाषण दोष है। २१ तत्रगत (भाषण) : गुरु बुलावें तब शिष्य को 'मत्थएण वंदामि इत्यादि शब्दों का उच्चारण करतेहुए शिघ्र ऊठकर नम्रता पूर्वक गुरु के पास जाना चाहिये बल्कि अपने आसन पर बैठे हुए ही जवाब दे =तत्रगत (भाषण) आशातना है। २२. किं भाषण :- गुरु बुलावे तब क्या है? क्या काम है? इस प्रकार शिष्य पूछता है तो किं भाषण आशातना लगती है। (बल्कि नभ्रता पूर्वक “मत्थरण वंदामि” बोलकर गुरु के पास जाकर “आज्ञा प्रदान किजीये” इत्यादि नम्र वचन बोलना चाहिये) २२.तुंभाषण : गुरु को सम्मान वाले शब्दों से (श्री पूज्य आप विगेरे ) बुलाना चाहिये। बल्कि तुं, तुझे तेरे इत्यादि अनादर दर्शाने वाले या तुं कारे वाले शब्दों से बुलाने तुंभाषण आशातना है। १) खद्ध प्रचुर अधिक देना ऐसा अर्थ भी है। २) यहाँ खद्धादि अदन ये आशातना भी कही है। जिसमें खद्ध का अर्थ प्रचुर अधिक होता है। ___ प्रचुरादि अर्थ सुगम न होने के कारण यहाँ नही कहा है। ३) इति प्रव० सारो० और धर्म संग्रह वृत्ति । ४) वर्तमान काल में ये शब्द प्रचलित नहि है। फिर भी शिघ्र 'जी' शब्द का प्रयोग कर उठने ___का रिवाज भी विनयवाला है।
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