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________________ विशेषार्थ : ३३ आशातश्माओं के नाम और भावार्थ संक्षेप में इस प्रकार है। १) पुरोगमनः (पुरः आगे गमन चलना) बिना कारण गुरु भगवन्त के आगे चलने से विनय का भंग (अविनय) होता है। अतः गुरु भगवन्त के आगे नहीं चलना | २) पक्षगमनः (पक्ष-पड़खे) गुरु भगवंत के दाहिनी या बॉयी और नजदीक नहीं चलना। (नजदीक चलने से श्वास खाँसी छींक इत्यादि आने से गुरु को श्लेश्म विगैरे लगता है। अतः ऐसी आशातना न हो इसके लिए दूर चलना चाहीये). . 1) 'पृष्ठ (पीछे) गमन: गुरु भगवन्त के पीछे स्पर्श हो वैसे चलना भी आशातना है। (आसन) ४) पुरःस्थः (पुरः आगे स्थ-खड़े रहना ) गुरु भगवन्त के आगे खड़े रहना भी आशातना 1) पक्षस्थः गुरु भगवन्त के दाहिनी या बाँयी ओर नजदीक में खड़े रहना भी आशातना 1) पृष्ठ (पीछे) स्थ:-गुरु के पीछे लेकिन नजदीक में खड़े रहना आशातना है। (आसन) 1) पुरोनिषीदन: गुरु के आगे (निषीदन) बैठना आशातना है। ४) पा निषीवन : गुरु के दाँये बाँये नजदीक में बैठना - आशातना है। 1) पृष्ठ (पीछ) निषीदन: गुरु के पीछे नजदीक में बैठना आशातना है। (आसन) १०. आचमन:- गुरु के साथ उच्चारभूमि के (स्थंडिल के लिए ) लिए जाने वाला शिष्य गुरु से पूर्व आचमन (हाथ-पाँव की शुद्धि) करता है तो आशातना । या आहार-पानी गुरुभगवन्त से पूर्व कर के खड़ा हो जाय - तो ये आशातना लगती है। ११. आलोचना : बाहर से उपाश्रय आने पर गुरु से पूर्व गमनागमन इरियावहि कर लेना ये आलोचना है। १२. अप्रतिश्रवण : जब गुरु पूछे कि 'कौन सो रहा है? कौन जागरहा है'? शिष्य जागरहा हो फिर भी जवाब न दे = अप्रतिश्रवण आशातना है। पूर्वालापन: वंदनादि कार्य से आनेवाले गृहस्थ को गुरु से पहले शिष्य बुलावे, या बातचित करे तो पूर्वालापन आशातना है। १५ पूर्वालोचन: गोचरी (आहारादि) लाकर के प्रथम अन्य साधु के सामने गोचरी आलोचना, बाद में गुरु के सामने आलोचना - पूर्वालोचना आशातना दोष लगता है। (१) ११ वीं और १४ वीं आशातना नाम से समान है, लेकिन अर्थ से भिन्न समजना | 130
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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