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________________ : .. १७. प्रत्यनीक दोष:- गाथा नं-१५ में दर्शाये अनुसार आहार निहारआदिके समय ... (अवसर) में वंदन नही करने के समय में वंदन करना । १८. 'रुष्ट दोष:- गुरु रोषायमान (गुस्सा में) हो उस समय वंदन करना । या स्वयं रोष में (क्रोध में) हो तब वंदन करना उसे रुष्ट दोष कहते है। .... १९. तर्जना दोष:- गुरुजी आप तो काष्ट के महादेव समान हैं। वंदन नहीं करने पर बे तो नाराज होते हैं। और वंदन करने पर न प्रसन्न होते है। अतः हम वंदन करे या न करे. : आपके लिए तो एक समान । इस प्रकार तर्जना करते हुए वंदन करे, या अंगुली आदि ब्दारा नर्जना करता हुआ वंदन करे, उसे तर्जना दोष कहते है। २०. शठ ढोष:- मन मे शठ भाव रख कर या जगत में विश्वास उपजाने के लिए : वंदन करे अथवा बिमारी विगेरे का बहाना बनाकर यथार्थ विधिसे कपट भावसे वंदन करे.. उसे शठ दोष कहते है। - २१. हीलित ढोष:- हे गुरु ? आपको वंदन करने से क्या लाभ ? इस प्रकार . अवज्ञा-अनादर करता हुआ वंदन करे उसे हीलित दोष कहते हैं। २२. विपलि (३) कुंचित ढोष:- वंदना करते हुए बीच में देशकथादिक विकथाएँ करे उसे, इसका दूसरा नाम विपरिकुंचित है। __२. 'दृष्टा दृष्ट ढोष:- गुरु न देखे इस प्रकार बहुत सारे साधु वंदन करतें हों उनके पीछे खड़ा रहे या अंधेरे मे खड़ा रहे और जब गुरु की दृष्टि पड़े तो वंदना करे अन्यथा न करे, बैठा रहे, उसे दृष्टा दृष्ट दोष कहते हैं। ___२४. शंग दोष:- पशु के शृंग के माफक "अहो कायं काय” इन पदो के उच्चार के समय ललाट के मध्यभाग को दोनो हाथों से स्पर्श करने के बजाय ललाट के दाँये बाँये भाग को स्पर्श करते हुए वंदन विधि करे उसे शृंग दोष कहते हैं। २१. कर दोष:- ये वंदन विधि-भी अरिहंत परमात्मा व गुरु भगवन्तो का कर(टेक्स) है, इस प्रकार मान कर वंदन करना उसे कर दोष कहते हैं। (१) ये अर्थ यद्यपि १७ वें प्रत्यनीक का दोष के एक अवयव में अंतर्गत है। (गौणता से) पिरभी यहाँ क्रोध की मुख्यता को मुख्य मानकर कहा है। (२) इस शब्द में वि और परि ये दो उपसर्ग है, और कंच धातुसे कंचन शब्द अल्प अर्थ के __ भावार्थ में है। जिससे कुंचि अल्पीकृत अर्धीकृत वदना। . (३) सोलहवे स्तेन दोष में दृष्टादृष्ट दोष कहागया है, वह लोगों द्वारा दृष्टादृष्ट है, और तेवीसवें दोष में गुरुदारा दृष्टादृष्ट शिष्य को समजना । 117
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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