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२६. करमोचन दोष:- साधु बनने से लौकिक (राजा विगैरे) कर से तो मुक्त हो गये, लेकिन अरिहंतरुपी राजा के (वांदणा देने रुप) करसे अभी तक मुक्त नहीं बने इस प्रकार के आशय से वंदन करना उसे करमोचन दोष कहते हैं। ___२७. आम्लिष्ट अनाम्लिष्टः- “अहो कायं काय” इत्यादि आवर्त करते समय दोनो हाथ रजोहरण तथा ललाट पर स्पर्श करना चाहिये । लेकिन विधि अनुसार स्पर्श न करे उसे (आश्लिष्ट = स्पर्श अनाश्लिष्ट= अस्पर्श) आश्लिष्ट अनाश्लिष्ट दोष कहते हैं। इसके चार विकल्प इस प्रकार है। १. दोनो हाथ दारा रजोहरण को स्पर्श करे और मस्तक को स्पर्श करे । (शुद्ध) २.दोनो हाथ द्वारा रजोहरण को स्पर्श करे और मस्तकको स्पर्श न करे । ३. दोनो हाथ दारा रजोहरण को न स्पर्श करे और मस्तको स्पर्श करे । ४. दोनो हाथ दारा रजोहरण को स्पर्श न करे और मस्तक को भी स्पर्श न करे । इसमें प्रथम विकल्प शुद्ध, शेष तीन विकल्प अशुद्ध है।
२८. न्यून दोष:- वंदन सूत्र के व्यंजन (=अक्षर) अभिलाप =(पद वाक्य) और आवश्यक (पूर्व कथित २५ आवश्यक) न्यून करे परिपूर्ण न करे उसे न्यून दोष कहते है।
२१. उत्तर चूह (उत्तर चूलिका) दोष):- उत्तर-वंदन करने के बाद पर्यन्ते (चूड़-ऊंची शिखा के समान) ऊंची आवाज में “मत्थएण वंदामि” इसे चूलिका रुप में अधिक बोलना उसे उत्तर चूड़ दोष कहते हैं।
10. मूळ डोष:- मूक-गूंगे मनुष्य की तरह वंदन सूत्रके अक्षरों को आलापक या आवर्त का सही उच्चार न करे किन्तु मुख से गणगणाके अथवा मनमें बोलकर-विचार कर वंदन करे उसे मूक दोष कहते हैं। .
३१. दार दोष:- बहुत ही ऊंचे स्वर से बोलकर वंदन करे उसे ढवर दोष कहते हैं।
१२. चूडलिक दोष:- चूडलिक-जलता हुआ तिनखा, जिसे पकड़कर धुमाया जाता है (बालक घुमाते हैं) वैसे रजोहरण को वृत्ताकार घुमाते हुए वंदन करना उसे अथवा हाथ को लंबाकर वंदन करता हु इस प्रकार बोलता हुआ वंदन करे उसे अथवा हाथ को लंबाकर घुमाते हुए “सर्वको वंदन करता हुँ” इस प्रकार बोलकर वंदन करे उसे चूडलिक दोष कहते है।
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