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Dadaminations
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इसमें प्रतिक्रमण के ४ और स्वाध्याय के ३, ये सात वंदन दिन के पूर्वार्ध भाग के और उत्तरार्ध भाग के १४ ध्रुव वंदन है । जिन्हें प्रतिदिन करना चाहिये और शेष कायोत्सर्गादि के वंदन यथायोग्य कारणो के प्रसंग पर करने योग्य से अध्रुव वंदन है। अवतरण:- इस गाथा मे २५ आवश्यक रुप १० वा दार कहा गया है।
दोऽवणयमहाजाय, आवत्ता बार चउसिर तिगुतं ।
दुपवेसिग निक्खमणं, पणवीसावसय किइकम्मे || १८ || शब्दार्थ :- अवणयं-अवनत, नमन, अहाजायं यथाजात, आवत्ता= आवर्त्त, दुपवेस= दो प्रवेश,इगनिक्खमणं= १ निष्क्रमण (निकल), पणवीस-पच्चीस, आवसय=आवश्यक, - गाथार्थ:- २ अवनत, १यथाजात, १२ आवर्त, ४ शीर्ष, ३ गुप्ति २ प्रवेश, और १ निष्क्रमण (निर्गमन) इस प्रकार दादशवर्त वंदन में २५ आवश्यक हैं। .
विशेषार्थ:-अवश्य करने योग्य क्रियाओं को आवश्यक कहा जाता है। यहाँ गुरु वंदन सूत्र बोलते समय २५ आवश्यक करने योग्य हैं। वो इस प्रकार हैं।
अवनत:-गुरु को वंदन करने की भावना प्रगट करने के लिए इच्छामि खमासमणो वंदिउंजावणिज्जाए निसीहियाए इन पांच पदों द्वारा किंचित मस्तक (शरीर सहित) झुकाना उसे अवनत कहाजाता है। प्रथम वंदन के समय प्रथम अवनत, और दुसरी बार अवग्रह में प्रवेश करते समय वंदन करते समय दूसरा अवनत भी इन्ही पांच पदों के उच्चार पूर्वक किया जाता है।
१. यथाजात:- यंथा जिस प्रकार, जात-जन्मा हो-याने जन्म समय की मुद्रा वाला बनकर गुरु वंदन करना, उसे यथाजात आवश्यक कहाजाता है। जन्म दो प्रकार का होता है। (१) दीक्षा जन्म (२) भवजन्म
१) दीक्षाजन्म:-संसार की माया रुप स्त्री के कुक्षी से जन्म लेना याने संसार का त्याग कर दीक्षा ग्रहण करना उसे दीक्षाजन्म कहते है।
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