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________________ २) भवजन्म:- माता की कोख से बाहर निकलना उसे भवजन्म कहते है। ... यथाजात आवश्यक में दोनो ही जन्म मुद्रा का प्रयोजन है वो इस प्रकार:-दीक्षाजन्म के समय (दीक्षा ग्रहण करते समय) चोलपट्ट (कटिवस्त्र) रजोहरण (ओधा) और मुहपत्ति ये तीन वस्त्र ही होते हैं, वैसे ही व्दादशावर्त वंदन के समय भी इन्ही तीन उपकरणों को . उपयोग करना, और भवजन्म के समय जिस प्रकार ललाट पर दोनो हाथ स्थापित कर | जन्म लिया हो, वैसी मुद्रा द्वारा गुरु वंदन करना उसे यथाजात आवश्यक कहाजाता है। १२ आवतः- (वंदन सुत्र के कुछेक पदों के उच्चार पूर्वक गुरु के चरणो पर व मस्तक पर हाथों से स्पर्श करना) काय व्यापार विशेष उसे आवर्त कहते हैं। १२ पदों द्वारा १२ आवर्त उस प्रकार है। (१) अहो (२) कार्य (३) काय संफासं, खमणिज्जो भे किलामो अप्पकिलंताणं बहुसुभेण भे दिवसो वडकतो (४) जत्ताभे (9) जवणि (6) जं च भे ये ६ आवर्त प्रथम बार अवग्रह में प्रवेश करते समय किये जाते हैं, और अवग्रह से बाहर निकलकर पूनः दूबारा अवग्रह में प्रवेश करते समय ये ६. आवर्त वापस बोले जाते है। ६+६=१२ आवर्त * इन छ आवों में प्रथम तीन आवर्त अहो काय इस प्रकार दो दो अक्षर वाले समजना, उससे प्रथम अक्षर के उच्चार के समय दोनो हथेलियों को उल्टी कर गुरु के चरणों पर लगाना, और दूसरे अक्षर के उच्चार के समय दोनो हथेलियों को सिधीकर ललाट पर स्पर्श करना । इस प्रकार तीन बार करना प्रथम तीन आवर्त होते है। और दूसरी बार जत्ता भे, जवणि, जंच भे तीन तीन अक्षरों वाले दूसरे तीन आवर्त है। (उसमे प्रथम और तीसरे अक्षर के उच्चार के समय प्रथम की रीत अनुसार करनी और दूसरे अक्षर के उच्चार के समय मध्य में थोड़ा विश्राम लेना (अटकना), यहाँ तीसरे आवर्त में संफासं पद और चोथे आवर्त में खमणिज्जो से : वइळतो तक के पद काय व्यापार पूर्वक तथा आवर्त नही गिने गये फिर भी सुत्र का अस्खलित संबंध दर्शाने के लिए इन पदो को आवश्यक वृत्ति में जिस प्रकार दर्शाये है, वैसे ही लिखे है। लेकिन आवर्त तोदो और तीन अक्षरो के ही समजना।
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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