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________________ (३). काउस्सग्ग के लिए:- योगोद्वहन के समय आयंबिल को छोड़कर नीवी का पच्चवखाण करने से पहले गुरु को वंदन किया जाता है उसे ४). अपराध क्षमा के लिए:- गुरु के प्रत्ति जो अपराध हुऐ हों उन्हे खमाने के लिए प्रथम गुरु वंदन करना उसे अपराध के लिए जानना । ५ ). 'पाहुणा के लिए:- वडील साधु प्राहुणा मेहमान पधारे तब प्राहुणा मेहमान 'साधु को (सांभोगिक अर्थात समान समाचारीवाले हों तो गुरु को पूछकर और असांभोगिक हो तो प्रथम गुरु को वंदन करके पूछे, और गुरु आदेश देंवे तो) वंदन करना उसे प्राहुणा. साधु के लिए समजना | ६). 'आलोचना के लिए: - अतिचार - अनाचार का आलोचनादि प्रायश्चित 'अंगीकार करना हो तब प्रथम गुरु को वंदन करना उसे आलोचना के लिए समजना । ७). प्रत्याख्यान के लिए:- विहार गमन के समय प्रथम गुरु को वंदन करना उसका समावेश भी इसी भेद में होता है। तथा अधिक आगार वाले एकाशनादि पच्चवखाण को भोजन करने के बाद कम आगार का करना, वह दिवस- चरिम पच्चक्खाण रुप संवर (संक्षेप), अथवा नमुक्कारसहियं आदि लघुपच्चक्खाण के स्थान पर (उसे बदलकर) उपवासादि का पच्चवखाण करना उसे भी संवर कहाजाता है, संवर अर्थात प्रत्याख्यान करने से पूर्व गुरु को प्रथम वंदन करना उसे प्रत्याख्यान के लिए समजना । ८) उत्तमार्थ के लिए:- अनशन तथा संलेखण (रुप उत्तम अर्थ माने प्रयोजन ) अंगीकार करने के लिए प्रथम गुरु वंदन करना उसे उत्तमार्थ के लिए समजना | इस प्रकार ८ कारण से गुरु वंदन करना चाहिये । १) इस में प्राहुणा मुनि लघु हो तो उन्हे ही वंदन करना, और प्राहुणा ज्येष्ठ हों तो तो वहाँ पर रहे हुए लघुमुनि उन्हे वंदन करे। २) आलोचनायां विहारापराधमेद भिन्नायां उति आव० वृत्ति वचनात् ! (१) चत्तारि पडिक्कमणे, किइकम्म तिनि हुति सज्झाए । पुव्वन्हे, अवरन्हे, किइकम्मा चउबस हवति । आ० नि० १२०१ ।। एवमेतानि ध्रुवानि प्रत्यहं कृतिकर्माणि चतुर्दश भवंति इति आव० वृत्ति० 103
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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