SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... (२) दर्शन कुशील:- 'निस्संकिअ निळखिय' इस पदकी गाथा में दर्शाये गये,.. आठ प्रकार के दर्शनाचार की विराधना करे उसे दर्शन कुशील कहते हैं। . (३) चारित्र कुशील:- मंत्र तंत्र कर चमत्कार दिखावे, स्वप्न फल दर्शावे, ज्योतिषसे लोगो को भरमावे भूत-भावी लाभ हानी दशवि, जड़ी बुट्टी से उपचार करे, स्वयं की जाति. कुल को दशवि, स्त्री पुरुष के लक्षण कहे, कामण-वशीकरण करे, स्नानादि से शरीर विभूषा : करे, इत्यादि अनेक प्रकार से चारित्र विराधना करे उसे चारित्र कुशील कहते हैं। ये तीनो ही प्रकार के अवंदनीय हैं। ॥ ४ (अवंदनीय )। संसक्त साधु के दो भेद || संसक्त :- गुण और दोष द्वारा संयुक्त याने मिश्र हों उसे संसक्त कहते है । जिस . प्रकार गाय खल-कपासिये का मिश्र बना हुआ आहार खाती है, वैसे ही संसक्त साधु मूलगुण (=५ महाव्रत) और उत्तर गुण (पिंडविशुद्धि, आहारशुद्धि) रुप गुणो में अधिक दोष वाले होते है। उसके दो भेद .: (१) संक्लिष्ट संसक्त:- प्राणातिपातादि पांच आश्रवयुक्त, रस गारवादि (रसत्रुद्धि-शाता) गारवयुक्त, स्त्री और गृहयुक्त इत्यादि दोष युक्त होते है, उसे संक्लिष्ट संसक्त कहते है। (२) असंक्लिष्ट संसक्त:- पार्श्वस्थ के पास जानेपर उसके समान गुणकाला बनजाता है और संविज्ञ साधुओं की निश्रा में रहे तब उनके समान गुण धर्म हो वैसे आचारविचार वाला हो जाता हो । अर्थात जहाँ जाता है, वहा वैसा बनजाता है उसे असंक्लिष्ट संसक्त कहते है। ॥ (१) (अवंदनीय) यथाछंद साधु के अनेक भेद || ___ यथाछंद:-जो उत्सूत्र प्ररुपणा करता फिरे, स्वयं की बुद्धि अनुसार अर्थ का प्रतिपादन करे, गृहस्थ के कार्यमें मन रखे, अन्य साधु के और शिष्य का अल्प अपराध होने पर भी उस पर वारंवार क्रोध करे, स्वयं की मति कल्पनानुसार आगम का अर्थ विचार कर विगई विगेरे पदार्थ का आनंदमय भोग करता हुआ विचरे, इत्यादि अनेक प्रकार के लक्षण युक्त हो उसे यथा छंद साधु कहते है। . यथा छंद आगम की अपेक्षा रहित स्वयं की मति कल्पना से चलने वाला। इस प्रकार पार्श्वस्थादि साधुओं को वंदन करने से कीर्ति या कर्म निर्जरा नहीं होती है, . सिर्फ कायक्लेश और कर्म बंध ही होता है। (विशेष भावार्थ आवश्यक नियुक्ति में विशेष दीया गया है) फिरभी ज्ञान दर्शन-चारित्रादिक के प्रगाढ कारण से किसी समय पार्श्वस्थादिक 97
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy