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________________ - (२) अक्सन्न (अवंदनीय) साधु के १ भेद अवसन्न :- साधु समाचारी मे जो अवसन्न (शिथील) हो उसे अवसन्न कहते है। इसके दो भेद है। (१) सर्वसे अवसन्न (२) देश से अवसन्न (१) सर्वसे अवसन्त्रः- "ऋतुबद्ध काल में पिठफलक दोष का उपभोगी हो और 'स्थापना भोजी, और 'प्राभृति भोजी हो उसे सर्व से अवसन्न कहते हैं . (२) देशसे अवसन्तः- प्रतिक्रमण, प्रतिलेखना, स्वाध्याय, भिक्षाचर्या ध्यान, उपवासादि, "आगमन, "निर्गमन, "स्थान, बैठना और शयन विगेरे साधु के योग्य सामाचारी का आचरण न करे, अथवा करे तो न्यूनाधिक करे या गुरु के वचन से करे, उसे देशसे अवसन्न कहते है। दोनो ही अवंदनीय है। . ॥ (अवंदनीय) कुशील साधु के भेद ॥ कुशील:- कुत्सित (खराब) आचार वाले को कुशील साधु कहते है। उसके तीन भेद है। (१) ज्ञान कुशील:- ‘काले विणए बहुमाणे इस गाथा में दर्शाये हुए आठ प्रकार के ज्ञानाचार की विराधना करे, उसे ज्ञान कुशील कहते है। (५) ये मेरे समुदाय के, या मेरे भक्त हैं ऐसा समज कर उसी के घर आहार के लिए जाना उसे कुलनिश्रा कहते है। (६) गुरु विगेरे की विशेष भक्ति करने वाले समुदाय (कुल) उसे स्थापना कुल कहते हैं। इस प्रकार पार्शस्थ साधु दो प्रकार के होने से कितनेक आचार्य उन्हे सर्वथा चारित्र से रहित ही मानते है। ये अयुक्त है। (प्रवचन सारो द्वार वृति) (७) वर्षा ऋतु में संथारे के लिए पाट की सुलभता न होने पर, बम्बू की पट्टियों से पाट बनाकर संथारा करना पड़ा हो, लेकिन धागे का बंध छोड़कर प्रतिदिन प्रतिलेखना करनी चाहिये । और ऐसा न करे .... उसे ऋतुबद्ध पीठफलक दोष, अथवा वारंवार शयन के लिए संथारा करे या संथारे को संपूर्ण दिन बिछाया हुआ रखे उसे ऋतुबद्ध पीठफलक दोष कहते हैं। (८) साधु के लिए आहार लाकर रखना स्थापना भोजी (७) स्वयं को इष्ट या मुनि को प्रिय आहार हो उसे बहुमान पूर्वक वहोरावे उसे प्राभृतिका, उसका भोजन करे। (१०) उपाश्रय में प्रवेश करते समय पग प्रमार्जना विधि तथा निसीहि कहने की विधि है, उसे आगम .. समाचारी कहते है। (११) उपाश्रय निकलते समय आवस्सहि विगेरे कहना उसे निर्गमन समाचारी कहते हैं। (१२) कायोत्सर्ग के समय खड़े रहने की विधि उसे स्थापना समाचारी कहते है। 96
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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