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________________ प्रभुने कहा है 'कृष्ण तुने वंदन के निमित्त से क्षायिक सम्यक्त्व व तीर्थकर नामकर्म उपार्जन किया है। इतना ही नहीं सातवीं नरक का आयु टुट करके तीन नरक का रहा है। यहाँ पर कृष्ण की दादशावर्त वंदना भाव कृतिकर्म है। और कृष्ण का मन रखने के लिए वीरक दारा की गयी वंदना, द्रव्य कृतिकर्म है। ॥ ४ विनयकर्म पर दो राजसेवक का दृष्टान्त || किसी गांव में दो राजसेवक अपनी अपनी सीमा के विवाद को सुलझाने के लिए राजदरबार की तरफ जा रहे थे, रास्ते में उन्हे मुनि भगवन्त के सुकुन हुए। दोनो में से एक ने मुनि को प्रदक्षिणा देकर, वंदन किया । मेरा कार्य अवश्य हो जायेगा इस प्रकार चिन्तन करते हुए राजदरबार में गया । दूसरे सेवक ने भाव रहित अनुकरण करते हुए वंदना की, और राजदरबार में गया। न्याय भाव वंदना करने वाले के पक्ष में हुआ। याने वह विजयी बना और दूसरे का पराजय हुआ। यहा प्रथम राजसेवक की वंदना भाव विनय कर्म है। और दूसरे की अनुकरण वंदना द्रव्य विनयकर्म है। | पूजाकर्म पर पालक और शाम्ब का दृष्टान्त || ___ कृष्ण वासुदेव के पालक और शाम्बकुमार विगेरे अनेक पुत्र थे। एकदा नेमिनाथ प्रभु दारिका नगरी में समवसरे। तब कृष्ण ने अपने पुत्रों से कहा कि 'जो प्रभु को प्रथम वंदना करेगा, उसे मैं अपना अश्व दूंगा।' शाम्बकुमार ने प्रातः काल में शैय्या का त्यागकर वहीं पर वंदना की, और पालक तो अश्व प्राप्ति की लालच में, प्रातः काल में शीघ्र उठकर अश्व पर सवार होकर प्रभु को वंदन करने गया। पालक अभव्य था अतः चित्त में अश्व प्राप्ति की सिर्फ लोभवृत्ति थी। कृष्ण ने प्रभु से पूछा। आपको प्रथम वंदना किसने की?' प्रभुने कहा" 'पालक कुमार ने प्रथम यहाँ पर आकर वंदना की, और शाम्बकुमार ने घर बैठे भाववंदना की है।' यह सुनकर कृष्णं ने शाम्बकुमार को अश्वरत्न दीया । यहाँ शाम्बकुमार की वंदना भाव पूजा कर्म है। और अभव्य पालक की लालच वृत्ति वाली वंदना द्रव्य पूजाकर्म है। __इन पांचो ही वंदना के विषय यधपि समान है फिरभी प्रथम वर्णित व्युत्पत्ति अर्थवाली क्रियाओंकी मुख्यता ध्यानमें रखकर, तथा प्रकारकी वंदना अलग अलग नामवाली जानना। १. . कर्म प्रकृति आदि में उदय में नहि आयाहुआ आयुष्य तूटता नहीं हैं ( कम होता नहीं) ऐसा कहा हैं , फीर भी श्री भगवतीजी आदि सूत्र में कृष्ण ने नरकायु कम किया है ऐसा स्पष्ट कहा है वह अपवाद या आश्चर्य रुप जाणना 94
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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