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________________ उत्तर दिया बादमें गच्छ स्वस्थ बने । और क्षुल्लकाचार्य प्रायश्चित्त अंगीकार कर शुद्ध बने . यहाँ क्षुल्लकाचार्य की व्रत छोड़ने की भावना के समय उनके रजोहरणादि उपकरणो का चिति-संचय उसे द्रव्य चितिवंदन कहे , और प्रायश्चित रुप इन्ही उपकरणो का संचय उसे भावचितिवंदन समजना । (आव० वृत्ति और प्र० सारो० वृत्ति के अनुसार) (इति बितीय दृष्टान्त) ॥ ३ कृतिकर्म पर कृष्ण और वीरक का दृष्टान्त || दारिका नगरी में कृष्ण वासुदेव और उनका मुखारविन्द देखकर ही बादमें भोजन करने वाला वीरक नाम का कोली राजसेवक रहता था। चातुर्मास दरम्यान कृष्ण वासुदेव राजमहेल से बाहर नहीं निकलते थे। दर्शन के अभाव में वीरक शालापति की काया दुर्बल होती गयी। चातुर्मास के पश्चात राजा-मंत्री विगेरे दर्शन के लिए आये, वीरक शालापति भी आया । कृष्ण ने उसे दुर्बलता का कारण पूछा । वीरक ने कहा “आपके दर्शन किये विना भोजन नहीं करूंगा, ऐसा मेरा संकल्प है।” और आप चार महिने तक राजमहेल से बाहर पधारे ही नहीं। मैने चार महिनो तक अन्न पान ग्रहण नहीं किया यही दुर्बलता का कारण है। इस प्रकार सुनकर कृष्णने वीरक को अनुमति लिये बिना अंतःपुरमें प्रवेश की अनुमति दी। - कृष्ण की जो जो पुत्री विवाह के योग्य होती थी। उसकी माता उसे सोलह श्रृंगार पहेनाकर कृष्ण के पास भेजती थी। कृष्ण उसे प्रश्न पूछते तुझे राणी बनना है या दासी'? 'राणी बनना है,' इसप्रकार जो पुत्री उत्तर देती उसे कृष्ण महोत्सव पूर्वक प्रभु नेमिनाथ के पास दीक्षा दिलवाते थे। एक बार माता की सिरवामण से पुत्रीने कृष्ण से कहा 'मुझे दासी बनना है, “तब कृष्ण ने उसका विवाह विरक के साथ करवा दिया । और वीरक को आज्ञा कि" 'इससे अधिक से अधिक घरेलु काम काज करवाना।' वीरक उससे बहुत काम करवाने लगा अंत में परेशान होकर उसने वीरक से कहा 'मुझे राणी बनना है, तब वीरकने उसे दीक्षा दिलवायी। इस में कृष्ण का एक ही ध्येय था मेरी कोई भी पुत्री दुर्गति में न पड़े । एक बार श्री नेमिनाथ प्रभुरैवतगिरि (गिरनार) समवसरे (पधारे) तब कृष्ण वासुदेव बहुत से राजा और वीरक शालापति प्रभु को वंदन करने के लिए गये। कृष्ण ने सर्व साधुओं को दादशावर्त वंदन किया । अन्य राजा तो थककर कुछेक मुनिओं को वंदन कर बैठ गये । लेकिन विरकशालवि ने कृष्ण का अनुसरण करते हुए वंदन किया । कृष्ण भी बहुत थक गये, तब प्रभु से कहने लगे, हे प्रभु ३६० संग्राम में भी मुझे इतनी थकान, नहीं लगी।' 93
SR No.022300
Book TitleBhashyatrayam Chaityavandan Bhashya, Guruvandan Bhashya, Pacchakhan Bhashya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmityashsuri
PublisherSankat Mochan Parshwa Bhairav Tirth
Publication Year
Total Pages222
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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