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________________ ( ५६ ) असंख्यात गुणकार है. याहीत याकू गुणश्रेणी निर्जरा कहिये है। ___ आगे गुणकाररहित अधिकरूप निर्जरा जाते होय सो कहै हैंजो वि सहदि दुव्वयणं साहम्मियहीलणं च उवसग्गं जिणऊण कसायरिउं तस्स हवेणिज्जरा विउला १०९ ___ भाषार्थ-जो मुनि दुर्वचन सहै तथा साधर्मी जे अन्यमुनि आदिक तिनकरि कीथा अनादर सहै तथा देवादिकनिकरि कीया उपसर्ग सहै कषायरूप वैरीनिकू जीतकरि ऐसे करे. ताकै विपुल कहिये विस्ताररूप बडी निर्जरा होय. भावार्थ-कोई कुश्चन कहै तौ तारां कषाय न करै तथा प्रापकू अतीचारादिक लागै तब प्राचार्यादि कठोर वचन कहि प्रायश्चित्त दें निरादर करैं ताकू निकषायपणे सहै. तथाकोई उपसर्ग करे तासूं कषाय न करै ताकै बढी निजरा होय है। रिणमोयणुव्व मण्णइ जो उवसग्गं परीसहं तिव्वं । पावफलं मे एदे मया वि यं संचिदं पुव्वं ॥११॥ ___ भाषाथै-जो मुनि उपसर्ग तथा तीव्र परिषहळू ऐसा मानै जो मैं पूर्वजन्ममैं पापका संचै कियाथा ताका यह फल है सो भोगना. यामैं व्याकुल न होना. जैसे काहूका करज काढ्या होय सो पैलो मांगे, तब देना. यामैं व्याकुलता कहा? पैसे मानै ताकै निजरा बहुत होय है।
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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