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( ५२ ) सो भमइ चिरं कालं संसारे दुक्खसंत्तत्वो ॥१०॥
भाषार्थ-जो पुरुष पूर्वोक्तप्रकार संवरके कारणनिक विचारतासंता भी आचरै नाही है सो दुःखनिकरि ततायमान हूवा संना घणे काल संपारमें भ्रमण करै है। ___ आगे कहै हैं जो कैसे पुरुषके संवर हो हैजो पुण विसयविरत्तो अप्पाणं सव्वदा वि संवरई। मणहरविसयेहितो(?)तस्स फुडं संवरो होदि ॥१.शा
: भाषार्थ-जो मुनि इन्द्रियनके विषयनित विरक्त हूवा संता मनकू प्यारे जे विषय. निनितें आत्याको सदाकाल नि. श्चयनै संवररूप करै है ताके प्रगटपणे संवर होय है. भावार्थ इन्द्रिय मनषि नितें रोकै अपने शुद्ध स्वरूपविय रमावै ताके संवर होय ।
दोहा. गुप्ति समिति वृष भावना, जयन परीसहकार । चारित धारै संग तजि; सो मुनि संवरधार ॥ ८॥
इति संवरानुपेक्षा समाप्तः ॥ ८॥
अथ निर्जरानुप्रेक्षा लिख्यते। वारसविहेण तवसा णियाणरहियस्स णिजरा होदि । वेरग्गभात्रणादो निरहंकारस्स णाणिस्स ॥१०२॥