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________________ ( २५ ) भावार्थ-सम्यग्दृष्टि कहिये यथार्थ श्रद्धावान बहुरि मुनि श्रावकके व्रतनिकरि सहित, तथा उपशम भाव कहिये मंद . कसायरूप परिणाम, तथा निंदन कहिये अपने दोष आपकी यादि करि पश्चाताप करना, गर्हण कहिये अपने दोष गुरुजनके निकट कहणा इनि दोऊनिकरि संयुक्त ऐसा जीव पु. ग्यप्रकृतिनकू उपजावै है. सो ऐसा विरला ही है। .. आगे कहै हैं पुण्ययुक्तकें भी इष्टवियोगादि देखिये है। पुण्णजुदस्स वि दीसइ इंट्ठविओयं अणि?संजोयं । भरहो विसाहिमाणो परिजओ लहुयभायेण ॥४९॥ ___ भाषार्थ-पुण्यउदयसहित पुरुषकै भी इष्टवियोग अनिष्ट संयोग देखिये है. देखो अभिमान सहित भरत चक्रवर्ती भी छोटाभाई जो बाहुवली तासू हारयो. भावार्य-कोऊ जानेगा कि निनिके बडा पुण्यका उदय है तिनिकू तो सुख है सो संसारमें तो सुख काहूकू भी नाही. भरत चक्रवर्तीसारिख भी अपमानादिकरि दुःखी ही भये तो औरनिकी कहाबात? ... आगें याही अर्थको दृढ करै हैंसयलट्ठविसहजोओ बहुपुण्णस्स विण सव्वदोहोदि। तं पुण्णं पिण कस्स विसव्वं जे णिच्छिदं लहदि ५. भाषार्थ-या संसारमें समस्त जे पदार्थ, तेई भये विषय कहिये भोग्य वस्तु, विनिका योग बडे पुण्यवानकू भी सोंगपणे नाही मिल है. ऐसा पुण्य ही नाही है जाकर सर्व
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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