________________
( ७ )
पुत्र, स्त्री, भले मित्र, शरीरकी सुन्दरता, गृह, गोधन इत्यादि समस्त वस्तु थिर हैं । भावार्थ- ये सर्व वस्तु अथिर जानिकर हर्ष विषाद नहि करना ।
1
सुरघणुतडिव्वचवला इंदियविसया सुभिच्चवग्गा य । दिट्ठपणा सव्वे तुरयगयरहवरादीया ॥ ७ ॥
भाषार्थ - या जगतविषै इन्द्रियनके विषय हैं ते इन्द्रध नुष तथा विजली के चमत्कारवत् चंचल हैं पहिली दीसे पी तुरंत विलाय जाय हैं बहुरि तैसे ही भले चाकरनिके समूह हैं बहुरि तैसे ही भले घोडे हस्ती रथ हैं ऐसे सर्व ही वस्तु हैं. भावार्थ - यह प्राणी श्रेष्ठ इन्द्रियनके विषय भले चाकर घोडे हाथी रथादिक की प्राप्ति करि सुख मात्रै है, सो ये सारे क्षणविनश्वर हैं, अविनाशी सुखका उपाय करना हो योग्य है ।
आगे बन्धुजन का संगम कैसा है सो दृष्टांतद्वारकरि कहैं हैंपंथे पहियजणाणं जह संजोओ हवेइ खणमित्तं । बंधुजणाणं च तहा संजोओ अधुओ होइ ॥ ८ ॥
भाषार्थ - जैसें मार्गविषै पथिक जननिका संयोग क्षण मात्र है तैसें ही संसारविषै बन्धुजननिका संयोग अथिर है । भावार्थ - यह प्राणी बहुत कुटुम्ब परिवार पावै, तब अभिमान करि सुख माने है. या मदकरि निजस्वरूपको भूलै है, सो यहु बन्धुवर्गका संयोग मार्गके पथिकजन सा