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________________ भाषार्थ-वेइंद्रिय तेइंद्रिय चौइंद्रिय पंचेंद्रिय पर्याप्त जीवनिका जघन्य देह धन अंगुलके असंख्यातचे माग है. सो भी ऊपरि ऊपरि संख्यात गुणे हैं. भावार्थ-वेइंद्रियका देहत संख्यातगुणा तेइंद्रियका देह है. तेइंद्रियतै संख्यातगुणा चौइद्रियका देह है. ता संख्यात गुणा पंचेंद्रियका है ॥१७४ ॥ श्रागें जघन्य अवगाहनाका धारक वेइंद्रिय प्रादि जीव कौन कौन हैं सो कहै हैंआणुधरीयं कुंथं मच्छाकाणा य सालिसिच्छो य । पज्जत्ताण तसाणं जहण्णदेहो विणिहिट्ठो ॥१७५।। __ भाषार्थ-वेइंद्रियमें तौ अणुद्धरी जीव, तेइंद्रियमें कुंथु जीव, चौइंद्रियमें काणमक्षिका, पंचेंद्रियमें शालिसिक्यक नामा मच्छ इनित्रस पर्याप्त जीवनिक जघन्य देह कहा है॥ १७॥ ___ आगें जीवका लोक प्रमाण पर देहप्रमाणपणा कहै हैं । लोयपमाणो जीवो देहपमाणो वि अत्थिदे खेते। ओगाहणसतीदो संहरणावसप्पधम्मादो ॥१७६।। ___ भाषार्थ-जीव है सो लोक प्रमाण है. बहुरि देहममाण भी है जातै संकोच विस्तार धर्म यामें पाइये है. ऐसी अवगाहनाकी शक्ति है. भावार्थ-लोकाकाशके असंख्यात प्रदेश हैं. सो जीरके भी एते ही प्रदेश हैं केवल समुद्घात करै तिस काल लोकपूरण होय . बहुरि संकोचविस्तारशक्ति यामें है
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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