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________________ (९४ ) - आगे भरत ऐरावत क्षेत्रविषै कालकी अपेक्षामनुष्यनिका शरीरकी ऊंचाई कहै हैंअवसप्पिणिएं पढमे काले मणुया तिकोसउच्छेहा । छहस्सवि अवसाणे हत्थपमाणा विवत्था य ॥१७२।। भाषार्थ-अवसर्पिणीका पहला कालविषै आदिमें मनुध्यनिका देह तीन कोश ऊंचा है. बहुरि छठाकालका अंतमें मनुष्यनिका देह एक हाथ ऊंचा है. बहुरि छठा कालका जीव वस्त्रादिकरि रहित होय हैं ॥ १७२॥ __आगें एकेन्द्रिय जीवनिका जघन्य देह कहै हैं,सव्वजहण्णो देहो लद्धियपुण्णाण सव्वजीवाणं । अंगुलअसंखभागो अणेयभेओ हवे सो वि॥१७॥ ___ भाषार्थ-लब्ध्यपर्याप्तक सर्व जीवनिका देह घनअंगुलके असंख्यातवें भाग है. सो यह सर्व जघन्य है. सो यामें भी अनेक भेद हैं. भावार्थ-एकेन्द्रिय जीवनिका जघन्य देह भी छोटा बडा है. सो घनांगुलके असंख्यात भागमें भी अनेक भेद हैं. सो गोम्मटसारविष अवयाहनाके चौसठि भेदनिका वर्णन है तहांतें जानना ॥ १७३ ॥ _ आगे वेइंद्रिय आदिकी जघन्य अवगाहना कहै हैं,वितिचउपंचक्खाणं जहण्णदेहो हवेइ पुण्णाणं । अंगुलअसंखभाओ संखगुणो सो वि उवरुवरि १७४
SR No.022298
Book TitleSwami Kartikeyanupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Pandit
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year
Total Pages306
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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